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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
प्रियता और अप्रियता के संवेदन की समस्या अपने आप समाहित हो जाती है । उससे तटस्थ भाव जागृत होता है, समता जागृत होती है, सामायिक घटित होती है । ऐसा होने पर दुःखों का बंधन अपने आप टूट जाता है । अतृप्ति और आकांक्षा के द्वारा पैदा होने वाले बंधन और दुःख अपनी मौत मर जाते हैं । व्यक्ति एक नए संसार का अनुभव करता है । उस अनुभव की सृष्टि में प्रवेश कर वह इस भाषा में बोल उठता है- 'संसार की परिक्रमा करने पर जो नहीं पाया, जो नहीं मिला, अपनी परिक्रमा करने पर वह सब कुछ मिल जाता है, जिसके मिल जाने पर फिर किसी वस्तु के मिलने की आकांक्षा शेष नहीं रहती ।'
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