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स्वर-चक्र का संतुलन और सामायिक
सत्य की खोज का अर्थ है-नियमों की खोज । प्राकृतिक जगत् में बहुत सारे नियम हैं । पौद्गलिक जगत् के अपने नियम हैं । आत्मिक जगत् के अपने नियम हैं । हमारे सशरीर चैतन्य के भी बहुत सारे नियम हैं । हमारा शरीर और भीतर की चेतना-इन दोनों के योग में बहुत सारे नियम प्राप्त हैं। नियम के आधार पर हमारा जीवन चलता है । जो नियमों को नहीं जानता, बदलने के सूत्र उसके हाथ में नहीं आ पाते । ऐसा नहीं है कि जो जैसा चल रहा है, वह वैसा ही चलता है । यदि हम नियमों को जान लें तो जो चल रहा है, उसे बदल सकते हैं | यदि हम नियमों को न जानें तो जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा । परिवर्तन का नियम
जो स्वर है, श्वास है, वह परिवर्तन का एक नियम है । प्राण का भी एक नाम है स्वर और उससे जुड़ा हुआ है श्वास । हमारे शरीर मे स्वर का एक चक्र चलता है । कभी दाईं नासिका से स्वर चलता है तो कभी बाईं नासिका से स्वर बदलता रहता है । प्राचीन लोगों ने कहा-अढ़ाई घड़ी से स्वर बदलता है । एक घड़ी अड़चास मिनट की होती है । वर्तमान के वैज्ञानिक अनुसंधाता कहते हैं-ढाई घंटा से स्वर-चक्र बदलता रहता है । जब बायां स्वर चलता है तब एक प्रकार की क्रिया होती है । जब दायां स्वर चलता है तब दूसरे प्रकार की क्रिया होती है । इस पर प्राचीन काल में बहुत गहन अध्ययन हुआ
और उसके आधार पर स्वरोदय शास्त्र का विकास हुआ। स्वर के आधार पर वर्तमान, भूत एवं भविष्य की स्थितियां बतलाई गईं । कभी कभी स्वर
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