________________
सामायिक और इन्द्रिय संवर
७१ हुए । संभव है-चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें समस्या का सूत्र मिल गया । वे पुलकित हो उठे ।
गणेश को सफलता का सूत्र मिला । उसने तत्काल शिव की परिक्रमा प्रारम्भ कर दी । तीन परिक्रमा कर वह बैठ गया ।
कार्तिकेय देरी से पहुंचा | गणेश को वहां बैठा देख अपनी विजय पर प्रसन्न हुआ | सोचा-यह बुद्धू है । यहीं बैठा है । बेचारा जाता भी तो कैसे ? पूजा मुझे मिलेगी, पुरष्कार मुझे ही मिलेगा।
गणेश ने कहा-पहले परिक्रमा मैंने की है । पुरस्कार मुझे मिलना चाहिए कार्तिकेय ने कहा-तुम झूठे हो । चूहे पर कैसे कर आए परिक्रमा ? मैंने ती लोक की परिक्रमा की है । मैं विजयी हूं | तुम हार गए, मैं जीत गया |
गणेश और कार्तिकेय- दोनों में विवाद होने लगा । महादेव ने कहागणेश ! तुम अपनी बात को सिद्ध करो । गणेश बोला-मैंने आपकी परिक्रम की | आप में तीनों लोक समाहित हैं । शिव से भिन्न कोई संसार नहीं है सारा संसार शिव में है । शिव की परिक्रमा करने का अर्थ है संसार की परिक्रम करना ।
महादेव ने गणेश की बात का समर्थन किया । गणेश जीता, कार्तिके हारा । चैतन्य की परिक्रमा करें
जो व्यक्ति अपनी परिक्रमा कर लेता है, अपने चैतन्य की परिक्रमा कर लेता है वह जीत जाता है । चैतन्य में सब कुछ समाया हुआ है । चैतन्य जगत् की परिक्रमा करने वाला जीत जाता है और पदार्थ जगत् की परिक्रमा करने वाला हार जाता है । मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि वह पदार्थ का और समूचे संसार का चक्कर लगाना चाहता है, उसे कभी सफलता नहीं मिलती। जिसने चैतन्य की परिक्रमा कर ली, अपने शिव की परिक्रमा कर ली, अपने महादेव की परिक्रमा कर ली, वह सफल हो गया । ___हमारी समूची सफलता का सूत्र है- अपने चैतन्य का अनुभव । चैतन्य का अनुभव करने पर इन्द्रियों की समस्या, मूर्छा और राग-द्वेष की समस्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org