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________________ ६८ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक प्रतिबिम्ब के साथ लड़ना है । इन्द्रियों के साथ लड़ने की कोई जरूरत नहीं है । मन के साथ लड़ना आवश्यक है। जिसने मन को समझ लिया, वह इन्द्रियों के साथ आने वाली मूर्च्छा को समाप्त कर देता है । प्रियता और अप्रियता, राग और द्वेष, मूर्च्छा ये सब मन के साथ आती हैं । ये इन्द्रियों की ज्ञानधारा में मिलती हैं । हम उस मूर्च्छा को समझें, मोह को समझें । उसको समझ लेने पर तटस्थता आ सकती है । इन्द्रियों के संवर से पहले आवश्यक है मन का संवर | मन का संवर होने पर इन्द्रियों का संवर अपने आप हो जाता है । जिस व्यक्ति का मन शांत है, चित्त शांत है, बुद्धि शांत है, उसके समक्ष रूप आए तो वह रूप होगा, ज्ञेय होगा किन्तु विकार नहीं होगा । ज्ञेय और विकार के बीच बहुत सूक्ष्म भेद - रेखा है । दोनों को अलग समझना चाहिए । शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श- ये सब ज्ञेय हैं, जानने योग्य हैं । हेय, ज्ञेय और उपादेय तीन प्रकार के पदार्थ हैं। कुछ पदार्थ हेय हैं, कुछ उपादेय हैं किन्तु ज्ञेय सब हैं। कीचड़, दलदल कूड़े करकट का ढेर - यह सब ज्ञेय है ज्ञेय की कोई सीमा नहीं होती । पदार्थ चाहे अशुचि हो या शुचि, अनित्य हो या नित्य, रमणीय हो या अरमणीय, सब ज्ञेय होते हैं, जानने योग्य होते हैं। एक भी पदार्थ ऐसा नहीं है, जो ज्ञेय न हो । ज्ञान की सीमा से परे कोई पदार्थ नहीं होता । ज्ञान अनन्त है तो ज्ञेय भी अनन्त है । ज्ञेय सब कुछ है । दूसरा प्रश्न है - हेय और उपादेय का, छोड़ने का और स्वीकार करने का । यह ज्ञान की सीमा नहीं है । यह मूर्च्छा की सीमा है । जिस वस्तु के साथ जुड़ने पर हमारी मूर्च्छा जागती है, वह वस्तु हेय बन जाती है और जिस वस्तु के साथ जुड़ने पर हमारी मूर्च्छा टूटती है, वह वस्तु हमारे लिए उपादेय बन जाती है। हेय और उपादेय के बीच भेद - रेखा खींची जा सकती है, किन्तु ज्ञेय के बीच में कोई भेद रेखा नहीं खींची जा सकती। जब मूर्च्छा अलग होती है, चैतन्य की धारा अलग होती है तब ज्ञेय ज्ञेय रह जाता है, हेय और उपादेय की सीमा अलग हो जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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