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सामायिक और इन्द्रिय संवर
का भाव रखते हो । एक को अच्छा मानते हो, एक को बुरा मानते हो । एक के आने पर रोम-रोम पुलकित हो जाता है और दूसरे के आने पर मन उदास हो जाता है , नाक-भौं सिकुड जाते हैं । इस स्थिति में तुम तटस्थ कैसे रहे ? तटस्थ वह होता है, जो सामायिक अथवा समता में लीन रहता है । तर्क का जाल
उसने कहा- 'क्या इन सबसे तटस्थत्ता खंडित होती है ? यदि इनसे भी तटस्थता खंडित होती है तो दुनिया में कोई भी तटस्थ हो नहीं सकता। क्या हम अपना विवेक खो दें ? मनुष्य को इतनी बुद्धि मिली है, इतना विवेक मिला है कि वह अच्छे को अच्छा माने और बुरे को बुरा माने । अच्छे के प्रति प्रियता का भाव संपादित करे और बुरे के प्रति अप्रियता का भाव रखे । यह विवेक है, बुद्धि का परिणाम है । इसको छोड़ने का अर्थ है पशु बन जाना, पशु की श्रेणी से भी नीचे चले जाना इसलिए यह आरोप सही नहीं हो सकता कि ऐसा करके मैं अपनी तटस्थता को तोड़ रहा हूं।' __तर्क की अपनी सीमा होती है | तर्क के क्षेत्र में अस्वीकार करने की बात नहीं होती । दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका तर्क के आधार पर समर्थन किया जा सके और तर्क के आधार पर खंडन न किया जा सके। हर बात का समर्थन तर्क के आधार पर किया जा सकता है | तर्क का काम ही है सचाई को न छूना, खंडन और मंडन को छूते रहना । जिसका जितना प्रबल तर्क, वह बात मंडित हो जाती है, जिसका जितना कमजोर तर्क वह बात खंडित हो जाती है । सचाई से उसका कोई संबंध नहीं । बस, तर्क की प्रबलता चाहिए | हम सब तर्क के जाल में उलझे हुए हैं । बुद्धि को बहुत बड़ा प्रभु मानकर चलने वाले इस बात को कैसे अस्वीकार करें।
अखंडित तटस्थता कब तक? .
मेरा मित्र मेरी बात को स्वीकार नहीं कर सका | मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ कि मेरा मित्र मेरी बात नहीं मान रहा है । स्वाभाविक है, इस धरातल पर चलने वाला हर व्यक्ति इस सचाई को अस्वीकार करेगा। उसने कहा-'यदि
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