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सामायिक के तीन आयाम
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सहिष्णुता का आयाम ____मेतार्य जन्मना चाण्डाल थे । वे भगवान् महावीर के संघ में दीक्षित हुए । उनका मुनि-जीवन ज्ञान और समता की साधना से प्रदीप्त हो उठा । उनके अन्तर की ज्योति जगमगा उठी । वे संघ की सीमा से मुक्त हो गए । अब वे अकेले रहकर साधना करने लगे | एक बार वे राजगृह में आए । स्वर्णकार के घर भिक्षा लेने पहुंचे । स्वर्णकार उन्हें देख हर्ष-विभोर हो उठा । वह वन्दना कर बोला-'श्रमण ! आप यहीं ठहरें । मैं दो क्षण में यह देखकर आ रहा हूं कि रसोई बनी या नहीं ?' स्वर्णकार भीतर घर में गया | मुनि वहीं खड़े रहे । स्वर्णकार की दुकान में क्रौंच पक्षी का युगल बैठा था । स्वर्णकार के जाते ही वह आगे बढ़ा और दुकान में पड़े स्वर्ण-यवों को निगल गया ।
स्वर्णकार मुनि को घर में ले जाने आया । उसने देखा, स्वर्ण-यव लुप्त हैं । वह स्तब्ध रह गया । उसके मन में आवेश उतर आया । उसने स्वर्णयवों के विषय में मुनि से पूछा | मुनि मौन रहे । स्वर्णकार का आवेश बढ़ गया । वह बोला-'श्रमण ! मैं अभी आपके सामने स्वर्ण-यव यहां छोड़कर गया | कुछ ही क्षणों में मैं लौट आया । इस बीच कोई दूसरा व्यक्ति यहां आया नहीं । मेरे स्वर्ण-यवों के लुप्त होने का उत्तरदायी आपके सिवाय दूसरा कौन हो सकता है ?' मुनि अब भी मौन रहे । . स्वर्णकार मुनि से उत्तर चाहता था । मुनि उत्तर दे नहीं रहे थे । उनका मौन स्वर्णकार की आकांक्षा पर चोट करने लगा | उसने आहत स्वर में कहा-'श्रमण ! वे स्वर्ण-यव मेरे नहीं हैं । वे सम्राट् श्रेणिक के हैं । मैं उनके अन्तःपुर के आभूषण तैयार कर रहा हूं | यदि वे स्वर्ण-यव नहीं मिलेंगे तो मेरी क्या दशा होगी, क्या आप नहीं जानते ? आप श्रमण हैं । आपने कितना वैभव छोड़ा है ! आप मेरे सम्राट के दामाद रहे हैं । अब आप मेरे आराध्य भगवान् महावीर के संघ में दीक्षित हैं । आप अपने त्याग को देख, सम्राट की ओर देखें, भगवान् की ओर देखें और मेरी ओर देखें । मन से लोभ को निवारें,मेरी वस्तु मुझे लौटा दें । मनुष्य से भूल हो सकती है । आप साधक हैं । अभी सिद्ध नहीं हैं । आप से भी भूल हो सकती है । अभी और कोई नहीं जानता | आप जानते हैं या मैं जानता हूं। तीसरा कोई नहीं जानता।
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