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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक भगवान् के कण-कण में अहिंसा का प्रवाह था । मैत्री और प्रेम की अजस्र धाराएं बह रही थीं । उसमें स्नात व्यक्ति की क्रूरता धुल जाती थी। अर्जुन का मन मृदुता का खेत बन गया । ___मनुष्य के अंतःकरण में कृष्ण और शुक्ल-दोनों पक्ष होते हैं । जिनकी चेतना तामसिक होती है, वे प्रकाश पर तमस् का ढक्कन चढ़ा देते हैं । जिनकी चेतना आलोकित होती है, वे प्रकाश को उभार तमस् को विलीन कर देते हैं । भगवान् ने अर्जुन के अन्तःकरण को आलोक से भर दिया। उसके मन में समता की दीपशिखा प्रज्वलित हो गई । वह मुनि बन गया ।
कल का हत्यारा आज का मुनि-यह नाटकीय परिवर्तन जनता के गले कैसे उतर सकता है ? हर आदमी उस सत्य को नहीं जानता कि मनुष्य के जीवन में बड़े परिवर्तन नाटकीय ढंग से होते हैं । असाधारण घटना साधारण ढंग से नहीं हो सकती । साधारण आदमी असाधारण घटना को एक क्षण में पकड़ भी नहीं पाता । अर्जुन से आतंकित जनता उसके मुनित्व को स्वीकार नहीं कर सकी। ___अर्जुन ने भगवान् के पास समता का मंत्र पढ़ा । उसकी समता प्रखर हो गई । मान-अपमान, लाभ-अलाभ, जीवन-मृत्यु और सुख-दुःख में तटस्थ रहना उसे प्राप्त हो गया ।
कुछ दिनों बाद मुनि अर्जुन भिक्षा के लिए राजगृह में गया । घर-घर से आवाजें आने लगीं-इसने मेरे पिता को मारा है, भाई को मारा है, पुत्र को मारा है, माता को मारा है, पत्नी को मारा है, मित्र को मारा है । कहीं गालियां, कहीं व्यंग, कहीं तर्जना और कहीं प्रताड़ना । अर्जुन देख रहा है-यह कृत की प्रतिक्रिया है, अतीत के अनाचरण का प्रायश्चित्त है । उसे यदि रोटी मिलती है तो पानी नहीं मिलता और यदि पानी मिलता है तो रोटी नहीं मिलती । पर उसका मन न रोटी में उलझता है और न पानी में । उसका मन समता में उलझकर सदा के लिए सुलझ गया । उसके समत्व की निष्ठा ने जनता का आक्रोश सद्भावना में बदल दिया । अहिंसा ने हिंसा का विष धो डाला ।
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