________________
सामायिक के तीन आयाम
अर्जुन निकट आते ही गरज उठा - 'तुम कौन हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? क्या तुम्हारे माता-पिता नहीं हैं ? कोई मित्र और परामर्शक नहीं हैं ? तुम्हें नहीं मालूम कि यहां आने पर तुम मृत्यु के अतिथि बन जाओगे ? तुम बोल नहीं रहे हो ! बड़े लापरवाह दीख रहे हो ! अब तैयार हो जाओ तुम इस मुद्गरपाण का प्रसाद पाने के लिए ।'
सुदर्शन अपने ध्यान में लीन था । वह न बोला और न प्रकंपित हुआ । अर्जुन का आवेश और अधिक बढ़ गया । उसने मुद्गर को आकाश में उछालने का प्रयत्न किया । पर हाथ उसकी इच्छा को स्वीकार नहीं कर रहे थे । वें जहां थे, वहीं स्तम्भित हो गए। अर्जुन ने अपनी सारी शक्ति लगा दी । पर उसका शरीर उसकी हर इच्छा को अस्वीकार करने लगा । उसका मनोबल टूट गया । आवेश शान्त हो गया ।
अब अर्जुन केवल अर्जुन था । उसका शरीर आवेश में शिथिल हो चुका था | वह अपने को संभाल नहीं सका । वह सुदर्शन के पैरों में लुढ़क गया । सुदर्शन ने देखा उपसर्ग शान्त हो चुका है । भय की काली घटा बिना बरसे ही फट गयी है । उसने अर्धोन्मीलित आंखें खोलीं । कायोत्सर्ग सम्पन्न किया। उसने महावीर की स्मृति के साथ अर्जुन के सिर पर हाथ रखा । उसकी मूर्च्छा टूट गई । उसके चिदाकाश में जागृति की पहली किरण प्रकट हुई । उसने जागृति के क्षण में फिर उस प्रश्न को दोहराया
'तुम कौन हो ?'
'मैं भगवान् महावीर का उपासक हूं ।' 'कहां जा रहे हो ?'
'भगवान् महावीर की उपासने करने जा रहा हूं।'
,
५५
'क्या मैं भी जा सकता हूं ?'
'किसी के लिए प्रवेश निषिद्ध नहीं है ।'
को
अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान् के पास पहुंचा। आरक्षिकों ने श्रेणिक सूचना दी कि पाप शान्त हो गया है । राजपथ निर्विघ्न है । निरंकुश हाथी पर अकुंश का नियंत्रण है। अर्जुन सुदर्शन के साथ भगवान् महावीर के पास चला गया है। राजकीय घोषणा के साथ राजपथ का आवागमन खुल गया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org