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सामायिक के तीन आयाम
१. प्राणी- प्राणी के बीच में समता की खोज और सहानुभूति २. द्वन्द्वों के दोनों तटों के बीच में मानसिक समता के पुल का निर्माण । समता का विकास मैत्री, अभय और सहिष्णुता - इन तीन आयामों में होता है । जिस व्यक्ति में प्रतिकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह अभय नहीं हो सकता और भयभीत मनुष्य में मैत्री का विकास नहीं हो सकता । जिसमें अनुकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह गर्व से उन्मत्त होकर दूसरों में भय और अमैत्री का संचार करता है । तीनों आयामों में विकास करने पर ही समता स्थायी होती है।
समता एक आयाम में विकसित नहीं होती । यह होता है कि हम किसी व्यक्ति को मैत्री के आयाम में अधिक गतिशील देखते हैं, किसी को अभय के आयाम में और किसी को सहिष्णुता के आयाम में । इनमें से एक के होने पर शेष दो का होना अनिवार्य है । समता के होने पर इन तीनों का होना अनिवार्य है । इन तीनों का होना ही वास्तव में समता का होना है ।
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मैत्री का आयाम
कालसौकरिक राजगृह का सबसे बड़ा कसाई था । उसके कसाईखाने में प्रतिदिन सैकड़ों भैंसे मारे जाते थे। एक दिन सम्राट् श्रेणिक ने कहा, कालसौकरिक ! तुम भैंसों को मारना छोड़ दो। मैं तुम्हें प्रचुर धन दूंगा ।'
कालसौकरिक को सम्राट् का प्रस्ताव पसन्द नहीं आया। भैंसों को मारना अब उसका धन्धा ही नहीं रहा, वह एक संस्कार बन गया । उन्हें मारे बिना कालसौकरिक को दिन सूना-सूना-सा लगता । उसने सम्राट् के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । सम्राट् ने इसे अपना अनादर मान कालसौकरिक को में डलवा दिया । एक दिन-रात वहीं रखा |
अन्धकूप
श्रेणिक ने भगवान् महावीर से निवेदन किया- 'भंते! मैंने कालसौकरिक से भैंसे मारने छुड़वा दिए हैं ।'
'श्रेणिक ! यह सम्भव नहीं है ।'
‘भंते ! वह अन्धकूप में पड़ा है । वह भैंसों को कहां से मारेगा ?" 'उसका हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है, फिर वह अपने प्रगाढ संस्कार को दंड-बल से कैसे छोड़ सकेगा ?”
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