________________
सामायिक के तीन आयाम
हमारे जगत् का मूल एक है या अनेक ? एकता मौलिक है या अनेकता ? दृश्य जगत् बिम्ब है या प्रतिबिम्ब ? ये प्रश्न हजारों-हजारों वर्षों से चर्चित होते रहे हैं। इनमें से दो प्रतिप्रत्तियां मुख्य हैं - एक अद्वैत की और दूसरी द्वैत की । वेदान्त की प्रतिपत्ति यह है कि जगत् का मूल एक है । वह चेतन, सर्वज्ञ और सर्वेश्वर है । उसकी संज्ञा ब्रह्म है । एकता मौलिक है, अनेकता उसका विस्तार है । हमारा जगत् प्रतिबिम्ब है । बिम्ब एक बह्म ही है । एक सूर्य हजारों जलाशयों में प्रतिबिम्बित होकर हजार बन जाता है । प्रातःकाल सूर्य की रश्मियां दूर-दूर फैलती हैं, सांझ के समय वे सूर्य की ओर लौट आती हैं । यह जगत् ब्रह्मा की रश्मियों का फैलाव है । यह लौटकर उसी में विलीन हो जाता है ।
सांख्य की प्रतिपत्ति यह है कि जगत् के मूल में दो तत्त्व हैं - प्रकृति और पुरुष (आत्मा) । प्रकृति अचेतन है और पुरुष चेतन । पुरुष अनेक हैं, इसलिए एकता मौलिक नहीं है । चेतन और अचेतन में बिम्ब और प्रतिबिम्ब का सम्बन्ध नहीं ।
महावीर की प्रतिपत्ति इन दोनों प्रतिपत्तियों से भिन्न है । उनका दर्शन है कि विश्व का कोई भी तत्त्व या विचार दूसरों से सर्वथा भिन्न नहीं है । इस अर्थ में उनकी प्रतिपत्ति दोनों से अभिन्न भी है। महावीर ने बताया कि अस्तित्व एक है । उसमें चेतन और अचेतन का विभाजन नहीं है । उसमें केवल होना ही है । वहां होने के साथ कोई विशेषण नहीं जुड़ता । जहां केवल होना है, कोरा अस्तित्व है, वहां होने के साथ कोई विशेषण नहीं जुड़ता । जहां केवल होना है, कोरा अस्तित्व है, वहां पूर्ण अद्वैत है । अस्तित्व की एकता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org