________________
अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक आदतों को बदलना है । जब तक यह इच्छा ही पैदा नहीं होती तब तक बदलने का प्रश्न ही नहीं होता । मान लें कि बदलने की इच्छा पैदा हो गई। पर उससे भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा | आदमी रोज यह इच्छा करता जाए कि मुझे क्रोध नहीं करना है, पर क्रोध के उत्पन्न होने में कोई अन्तर नहीं आएगा । इच्छा के साथ दृढ़ निश्चय भी होना चाहिए | इच्छा को दृढ़ निश्चय में बदल देना चाहिए । निश्चय ऐसा हो कि मुझे बदलना ही है । बदले बिना चैन नहीं लूंगा । निश्चय दृढ़ होगा तो रूपांतरण प्रारम्भ हो जाएगा । दृढ़ निश्चय के साथ-साथ निरन्तरता भी होनी चाहिए । एक दिन निश्चय किया, फिर दस दिन तक उसकी स्मृति ही नहीं रही तो कुछ भी रूपांतरण घटित नहीं होगा। निरंतरता से आदत अपने आप बदलने लग जाएगी । रूपान्तरण के उपाय
रूपान्तरण के तीन मुख्य उपाय हैं
१. वर्तमान में पाप का व्युत्सर्ग करें- पाप न करने का दृढ़ संकल्प करें-'इयाणिं णो जमहं पुवकासी पमाएणं'–अब मैं वैसा काम नहीं करूंगा जो मैंने पहले प्रमादवश कर लिया था ।
ये तीनों उपाय जब एक साथ काम में लिए जाते है तब रूपांतरण घटित होने लग जाता है, प्रगति होने लग जाती है।
आराधना में निरूपित मानसिक चिकित्सा पद्धति की भाषा पुराना है । आज की मनोचिकित्सा की पद्धति की भाषा नई है । यदि उस पुरानी भाषा को नई भाषा में बदला जा सके तो इस सामायिक की आराधना को मानसिक चिकित्सा का एक महाग्रन्थ कहा जा सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org