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सामायिक के बाधक तत्त्वों से कैसे बचें ?
करती है । वहां लड़ाइयों और क्रांतियों के लिए मार्ग प्रशस्त हो जाता है । ___अपनी प्रगति के लिए जरूरी है- सीमा का बोध । जब सीमा-बोध की चेतना स्पष्ट हो जाती है तब प्रगति की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं । यदि सीमा-बोध की चेतना नहीं जागती है और व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग करता है तो उसके प्रति दूसरे के मन में प्रतिहिंसा की भावना जागती है । हिंसा और प्रतिहिंसा, क्रिया और प्रतिक्रिया-यह सब सीमा के अतिक्रमण के परिणाम हैं । प्रगति के लिए सीमा-बोध को मूल्य देना आवश्यक है । ___ मैंने प्रगति के कुछेक सूत्रों की विवेचना प्रस्तुत की है । यदि ये सारे सूत्र हमारी बुद्धि में समा जाते हैं तो प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है और अठारह पापों के व्युत्सर्ग की चेतना भी जाग जाती है, सामायिक की सफल आरधना संभव बन जाती है ।
जयाचार्य ने आराधना में पाप के व्युत्सर्ग का सुन्दर प्रकरण लिखा है । अतीत का शोधन हो, आदतें बदले और भविष्य के लिए ऐसी व्यवस्था हो, जिससे पाप का आगमन न हो । आस्तों को बदलने की प्रक्रिया
प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया आदतों को बदलने की प्रक्रिया है । प्रश्न हैआत्तें कैसे बदलें ? प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि आदतें बदलें पर आदतें बदनती नहीं हैं । क्यों नहीं बदलती ? पूरी रोटी नहीं खाई, भूख नहीं मिटी । पूरा पानी नहीं पिया, प्यास मिटी नहीं । औषधि का पूरा कोर्स नहीं लिया। बीमरी मिटी नहीं । इसी प्रकार आदतों को बदलने का पूरा कोर्स है । यह मनविज्ञान की भाषा है । अध्यात्म की भाषा में भी ऐसा ही कोर्स है ।
विलियम जेम्स ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आदतों को बदलने का कोर्स ' प्रस्तुत किया है । उसमें तीन बातें मुख्य हैं
१. बदलने की तीव्र इच्छा। २. दृढ़ निश्चय । ३. निरन्तरता । पहली बात है कि व्यक्ति के मन में तीव्र अभीप्सा जागे कि उसे अपनी
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