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________________ सामायिक के तीन आयाम ५३ भय से संत्रस्त, हिंसा से आतंकित और संदेह से उत्पीड़ित हो रहा था । यह महावीर के लिए चुनौती थी । यह चुनौती थी उनकी अहिंसा को, उनकी संकल्प शक्ति को और उनके धर्म की समग्र धारणा को । भगवान् ने इस चुनौती को झेला । वे राजगृह पहुंचे और गुणशीलक चैत्य में ठहर गए। राजगृह के नागरिकों को भगवान् के आगमन का पता लग गया । पर कौन जाए ? कैसे जाए ? भगवान् महावीर और राजगृह के बीच में दिख रहा था सबको अर्जुन और उसका प्राणघाती मुद्गर । जनता के मन में उत्साह जागा पर समुद्र के ज्वार की भांति पुनः समाहित हो गया । सुदर्शन का उत्साह शान्त नहीं हुआ । उसने भगवान् की सन्निधि में जाने का निश्चय कर लिया । उसकी विदेह - साधना बहुत प्रबल थी । वह मौत के भय से अतीत हो चुका था । उसने अपने माता-पिता से कहा‘अम्ब-तात ! भगवान् महावीर गुणशीलक चैत्य में पधार गए हैं। 'वत्स ! हमने भी सुना है, जो तुम कह रहे हो ।' 'अब हमारा क्या धर्म है ?' 'हमारा धर्म है भगवान् की सन्निधि में उपस्थित होना । किन्तु... । ' 'अंब- तात ! भय के साम्राज्य में किन्तु का अन्त कभी नहीं होगा ।' 'क्या जीवन का कोई मूल्य नहीं है ?' 'धर्म का मूल्य उससे बहुत अधिक है । अल्पमूल्य का बलिदान कर यदि मैं बहुमूल्य को बचा सकूं तो मुझे प्रसन्नता ही होगी ।' 'वत्स ! अभी मगध सम्राट् श्रेणिक भी भगवान् की सन्निधि में नहीं पहुंचे हैं, तब हमें क्यों इतनी चिन्ता मोल लेनी चाहिए ?" 'यह चिन्ता का प्रश्न नहीं है, यह धर्म का प्रश्न है । यह सत्ता का प्रश्न नहीं है, यह श्रद्धा का प्रश्न है । क्या श्रद्धा के क्षेत्र में मेरा स्थान सम्राट् सें अग्रिम पंक्ति में नहीं हो सकता ?" 'क्यों नहीं हो सकता ?" 'फिर आप सम्राट् की ओट मे मुझे क्यों रोकना चाहते हैं ?" 'अच्छा वत्स ! तुम भगवान की शरण में जाओ। तुम्हारा कल्याण हो । निर्विघ्न हो तुम्हारा पथ ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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