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________________ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक से मैंने पूछा- तुम स्वस्थ थे । हट्टे-कट्टे थे । तुम्हारा शरीर निगड था । ऐसी स्थिति कैसे हो गई ? आज पूरा शरीर थका-मांदा सा लगता है । क्या बात है ? ४० उसने कहा- मेरे परिवार का एक सदस्य अत्यन्त बीमार हो गया । उसकी स्थिति को देखकर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा । व न चल सकता है, न उठबैठ सकता है, न करवट ही बदल सकता है। ऐसी अवस्था से मुझे भयंकर चोट पहुंची । उसी दिन से मेरी यह स्थिति हो रही है । न खाया हुआ पचता है और न कोई पदार्थ अच्छा लगता है । उसी दिन मैं बीमार हो गया । महत्त्वपूर्ण चिकित्सा सूत्र यह मन की बीमारी है, शरीर की नहीं । मन की बीमारियां अपने आपको न देखने के कारण पैदा होती हैं । 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो' - यह एक छोटा-सा सूत्र लगता है, किन्तु यह इतना महत्त्वपूर्ण चिकित्सा - सूत्र है, इतनी कारगर औषधि है कि यदि सूत्र हृदयंगम हो जाता है तो ध्यान और ज्ञान समझ में आ जाता है, सामायिक समझ में आ जाती हैं, सारी चिकित्सा पद्धतियां और मेथड्स हमारे हाथ लग जाते हैं । दूसरों पर आरोप लगाने के भयंकर परिणाम होते हैं। दूसरों पर आरोप लगाने वाला, दूसरों पर आरोप लगाने से पूर्व आरोपित हो जाता है और अनजाने ही मन उस बात को इतना पकड़ लेता है कि वह व्यक्ति अपराधी की भांति मन ही मन घुलने लग जाता है। यह एक प्रकार का कैंसर है । कैंसर का, अन्तर्व्रण का पता नहीं चलता, शल्य का पता नहीं चलता, पर भीतर ही भीतर वह इतनी विकृति पैदा कर देता है कि एक दिन जब विस्फोट होता है तब ज्ञात होता है कि कितना भयंकर परिणाम हुआ है । अन्तःशल्य है कैंसर भगवान् महावीर के दर्शन में पहला सूत्र है- निःशल्य होना, शल्य को समाप्त कर देना । अन्तः शल्य को आज की भाषा में कैंसर कहा जाता है । जब तक माया का शल्य, आकांक्षा का शल्य, मिथ्यादृष्टि का शल्य होता है तब तक धर्म की आराधना नहीं की जा सकती, तब तक व्रत का स्वीकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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