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सामायिक के बाधक तत्त्वों से कैसे बचें ? है और फिर औषधि का निर्देश देता है । अनेक बीमारियां मानसिक होती हैं और उनका निदान किया जाता है शारीरिक । कभी-कभी डॉक्टर मलमूत्र और रक्त का परीक्षण कर लेने के पश्चात् भी रोगों का निर्णय नहीं कर सकता।
एक रोगी डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर ने सभी परीक्षण कर दिए । रोग की जानकारी नहीं हुई । डॉक्टर ने रोगी से कहा- परीक्षणों में रोग का कोई संकेत प्राप्त नहीं है । तुम्हाग रक्त शुद्ध है, लीवर ठीक काम कर रहा है । शरीर के शेष अवयव भी स्वस्थ हैं । तुम्हें कोई रोग नहीं है । डॉक्टर असमंजस में पड़ गया । जहां बीमारी है वहां वैज्ञानिक उपकरण पहुंच नहीं पाते । यंत्रों से यदि बीमारी पकड़ में नहीं आती है तो डॉक्टर बेचारा क्या करे । वह कह देता है, कोई रोग नहीं है ।
रोगी निराश हो गया । अनेक बड़े-बड़े कारण डॉक्टरों के दरवाजे खटखटाए । सभी से एक ही उत्तर मिला- तुम नीरोग हो । तुम्हारे कोई रोग नहीं है । अन्त में वह रोगी एक मनोचिकित्सक के द्वार पर गया । मानसिक चिकित्सक ने पूछताछ की । बातचीत के दैरान चिकित्सक को रोग का मूल कारण ज्ञात हो गया । उसने जान लिया कि रोगी के दादा को किसी ने तिरस्कृत किया था, अपमानित किया था । रोगी देख रहा था । वह उस अपमानजनक स्थिति को सहन नहीं कर सका । उसका खून खौल उठा । उसके मन में एक गहरी गांठ लग गई कि जब तक उस व्यक्ति से बदला न ले लूं तब तक सुख-चैन की नहीं सोऊंगा | गांठ घुल गई । वह संवेदन तीव्र होता गया । घटना जब भी याद आती, वह आपा भूल जाता और उस ग्रंथि के प्रभाव में बड़बड़ाने लग जाता और एक बीमार जैसा व्यवहार करने लग जाता | ___मानसिक चिकित्सक को रोग का उपादान मिल गया, मूल कारण ज्ञात हो गया, उसने कहा-देखो, रोग को मैंने पहचान लिया है । इस पर कोई औषधि कारगर नहीं होगी। जब तक प्रतिशोध की ग्रंथि खुल नहीं जाएगी, तुम बीमार ही बने रहोगे । बदले की भावना जब तक तुम्हारे मन से निकल नहीं जाती, तब तक कितना ही उपचार करो, रोग मिटेगा नहीं ।
अनेक बीमारियां मानसिक दुर्बलताओं के कारण पनपती हैं । एक भाई
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