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सामायिक के बाधक तत्त्वों से कैसे बचें ?
है । जो व्यक्ति चेतना के सागर में प्रवेश करता है, उसे अज्ञात सत्य ज्ञात होने लग जाता है । जो व्यक्ति चेतना के सागर में डुबकियां लगाना प्रारम्भ करता है, उसे वह सब साक्षत् होने लग जाता है जो पहले नहीं जाना था, नहीं सोचा था ।
महानता के बाधक तत्त्व ___ जो व्यक्ति अपने आपको नहीं देखता, वह दूसरों को देखता है । दूसरों को देखना महानता की अनुभूति की सबसे बड़ी बाधा है | क्रोध, अहंकार, माया, लोभ, ईर्ष्या, दोषारोपण, कलह, निन्दा-ये सब महानता के बाधक तत्त्व हैं । ये सब तत्त्व दूसरों को देखने से फलित होते हैं । जो दूसरों को कम देखता है, उसे क्रोध कम आएगा | जो दूसरों को अधिक देखता है, उसे क्रोध अधिक आएगा | नौकर ने काम ठीक नहीं किया, क्रोध से तिलमिला उठेगा ! पत्नी ने बात नहीं मानी, क्रोध से उबल पड़ेगा । सहयोगी ने काम ठीक नहीं किया, चेहरा तमतमा उठेगा । जब-जब आदमी दूसरों को देखता है और जब-जब उसकी रुचि टकराती है, तब-तब गुस्सा उभर आता है । क्रोध दूसरे को देखने का परिणाम है | अपने आपको देखना शुरू करें, क्रोध विलीन हो जाएगा | क्रोध आएगा ही नहीं । किस पर आएगा क्रोध ? क्रोध दूसरे से संबंध रखता है । क्रोध आने में दो चाहिए |
अहंकार भी दूसरे को देखने से आता है । अहंकार छोटों पर आता है। जब व्यक्ति दूसरे को अपने से छोटा देखता है तब अहंकार पैदा होता है | वह अनुभव करता है-इनके पास कुछ भी नहीं है । इनके पास कहां है ज्ञान ? इनकी जाति का महत्त्व ही क्या है । इनके पास कहां है वैभव और सत्ता ? इनके पास कहां है अधिकार ? मेरे पास कितना वैभव और सत्ता है ! मेरी जाति कितनी बड़ी है ! सदा तुलना में अहंकार जागता है और जब आदमी अपने से बड़ों को देखता है तब उसमें हीनभावना जाग जाती है । यह अहंकार का ही दूसरा पहलू है । अहं भावना और हीन भावना दोनों का जागरण होता है दूसरों को देखने के द्वारा, पर-दर्शन के द्वारा । जो व्यक्ति अपने आपको देखना नहीं जानता, जो व्यक्ति अपने आपको नहीं देखता, वह या तो अहंकार से भर जाएगा या हीनभावना से भर जाएगा ।
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