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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक 'जानते हैं, यह ठीक बात है। किन्तु नहीं जानते वह भी बहुत है । ज्ञात बहुत थोड़ा है, अज्ञात बहुत अधिक है । हम बहुत कम जानते हैं, जानने वाली बात अधिक है । समुद्र के ऊपरी सतह पर मिलेगा कीचड़, घास, केकड़े
और सीपियां । जो आदमी गहराई में नहीं जाता, उसे समुद्र का अन्तस्तल नहीं मिलता | वह नहीं मिलता जो कि समुद्र का सार होता है । मूल्यवान् मोती समुद्र के तट पर सैर करने वाले व्यक्ति को नहीं मिल सकते । किसी खदान पर जाओ, वहां मिलेगा पत्थर और धूल । हीरा और पन्ना वहां प्राप्त नहीं होता । जो व्यक्ति खदान की गहरी खुदाई में चला जाता है, वहां उसे हीरे पन्ने प्राप्त हो सकते हैं । समुद्र की गहराई में अमूल्य चीज मिलती है। खदान की गहराई में बहुमूल्य चीज मिलती है । चेतना की गहराई में भी बहुमूल्य चीज मिलती है । जो व्यक्ति अपनी चेतना की गहराई में नहीं जाता, उसे कुछ भी नहीं मिलता । जो चेतना की सतह पर यात्रा करता है, उसे मिलता है क्रोध, अहंकार और वासनाएं । वहां सार की बात नहीं मिलती ।
‘अपने आपको देखो', इसका अर्थ है-चेतना की गहराई में प्रवेश करो, अन्तस्तल के गहरे में गोते लगाओ और भीतर जो कुछ छिपा पड़ा है, उसे अनावृत करो, बाहर लाओ और उपयोग करो |
अपने आपको देखने वाला सचमुच प्रगति के पथ पर आगे बढ़ जाता है । महानता अन्तस्तल में छिपी रहती है । क्षुद्रता सतह पर तैरती है । प्रत्येक व्यक्ति में महानता होती है पर वह सदा छिपी रहती है । जो चेतना की गहराई में गोता नहीं लगाता, वह महानता को उपलब्ध नहीं हो सकता । प्रौढ़ व्यक्तित्व, महान् व्यक्तित्व उसी को उपलब्ध होता है, जो निरंतर अपने आपको देखता है और अपनी गहराइयों में डुबकियां लगाता है ।
लोगों का सामान्य विश्वास यही है कि आंख खुली रहने पर रंग दिखाई देता है, प्रकाश दिखाई देता है। आंख बन्द करने पर न रंग दिखाई देता है और न प्रकाश दिखाई देता है । आश्चर्य की बात है कि साधना-काल में आंखें बन्द होने पर भी रंग दिखाई देता है, प्रकाश दिखाई देता है । किसी को बल्ब का प्रकाश, किसी को ट्यूब लाइट का प्रकाश और विचित्र रंग दिखाई देते हैं। सामान्यतः इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता किंतु यह यथार्थ अनुभव
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