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________________ सामायिक के बाधक तत्त्वों से कैसे बचें ? सामायिक का अर्थ है-सावध योग का प्रत्याख्यान वह प्रवृत्ति, जो पापयुक्त होती है, सावद्य कहलाती है | पाप अशुभकर्म का उदय है । पहले बंधा हुआ अशुभ कर्म उदय में आकर जब अशुभ फल देता है तब वह पाप कहलाता है । पाप अठारह प्रकार का है : १. प्राणातिपात-प्राण-वियोजन से होने वाला कर्मबंध | २. मृषावाद पाप-झूठ बोलने से होने वाला कर्मबंध । ३. अदत्तादान पाप-चोरी करने से होने वाला कर्मबंध । ४. मैथुन पाप-अब्रह्मचर्य सेवन से होने वाला कर्मबंध । ५. परिग्रह पाप-परिग्रह से होने वाला कर्मबंध | ६. क्रोध पाप-क्रोध करने से होने वाला कर्मबंध । ७. मान पाप-मान करने से होने वाला कर्मबंध । ८. माया पाप-माया करने से होने वाला कर्मबंध । ९. लोभ पाप-लोभ करने से होने वाला कर्मबंध । १०. राग पाप-राग करने से होने वाला कर्मबंध | ११. द्वेष पाप-द्वेष करने से होने वाला कर्मबंध । १२. कलह पाप-कलह करने से होने वाला कर्मबंध । १३. अभ्याख्यान पाप-मिथ्या आरोप लगाने से होने वाला कर्मबंध । १४. पैशुन्य पाप-चुगली करने से होने वाला कर्मबंध | १५. पर-परिवाद पाप-निंदा करने से होने वाला कर्मबंध । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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