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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक अन्य वृत्तियों को भी परिष्कृत किया जा सकता है । सामायिक की साधना में एक-एक वृत्ति पर चिन्तन-मंथन, अनुप्रेक्षा की जाए तो चिन्तन करते-करते चिंतामणि हाथ में आ जाती है । यह जरूरी नहीं है कि एक दिन में परिवर्तन
आ जाए, लेकिन दृढ अध्यवसाय के साथ सतत चिन्तन चलता रहे तो परिवर्तन निश्चित होता है । समता की साधना : परिवर्तन की प्रक्रिया
चिन्तन ही चिन्तामणि है । इसके अतिरिक्त और चिन्तामणि क्या है ? हमारे पास ऐसी दुर्लभ वस्तुए हैं । अनेक लोग कहते हैं, चिन्तामणि मिल गया, कल्पवृक्ष मिल गया । कल्पना के सिवाय कल्पवृक्ष क्या है ? कल्पना की शक्ति जाग गई, कल्पवृक्ष हमारे हाथ में आ गया । एक कामना की, एक संकल्प को दोहराया, एक महान् उद्देश्य को पूरा किया, कामधेनु हमारे हाथ में आ जाती है । ये सब हमारे हाथ में हैं किन्तु समस्या यही है-हम प्रयोग करना नहीं जानते । यदि हम सामायिक करना जान लें तो समता की दिशा में आगे बढ सकते हैं । सम्भव है कि उसकी प्राप्ति में कुछ समय लग जाए | दुनिया में एक झटके में कोई परिवर्तन नहीं होता । परिवर्तन का एक क्रम होता है | ऐसा नहीं कि आज प्रातः बीज बोया और शाम को ही फसल तैयार हो जाए । एक क्रम होता है, किसान को यह विश्वास होता है-आज जिस बीज को बोया है, वह दो-ढाई महीने बाद भरपूर फसल देगा । यदि हम क्रम से चलें तो निश्चित निष्पत्ति होती है । हम निष्पत्ति को नहीं जानते, क्रम को नहीं जानते । समता की साधना का अर्थ है, परिवर्तन की प्रक्रिया को जान लेना, जिस आदत को बदलने के लिए जिस आलंबन की जरूरत है, उसका बोध हो जाना। स्वभाव परिवर्तन का अमोघ उपाय
अठारह पाप-सावध प्रवृत्तियां हैं । इनको बदलने के लिए अठारह ही निरवद्य प्रवृत्तियां हैं । सामायिक के कम से कम अठारह साधक तत्त्व हैं, इससे ज्यादा भी हो सकते हैं । हम चुनाव करें और उनकी साधना करें । यह निश्चित है, अभ्यास के बिना परिवर्तन सम्भव नहीं है । एक अल्पबुद्धि वाला व्यक्ति
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