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सामायिक के साधक तत्त्व
सहज प्रश्न होता है - जप, ध्यान आदि का प्रयोग क्यों ? इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है - समता की साधना । यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । समता से बड़ी दुनिया में कोई उपलब्धि नहीं है । धन मिला, सत्ता मिली, सब कुछ मिला, किन्तु समता नहीं मिली तो सुख नहीं मिला, आदमी दुःख में ही जीएगा ।
निकटतम हेतु
समता के बिना प्रत्येक मनुष्य दुःख का जीवन जीता है । धन, पदार्थ, सत्ता, अनुकूल योग-ये सारे सुख के परम्पर हेतु बन सकते हैं, अनंतर नहीं । सुख के निकट हेतु हो सकते हैं, निकटतम नहीं । सुख का जो निकटतम साधन है, वह है समता । समता है तो पदार्थ भी सुख दे सकता है, सुख का कारण बन सकता है। यदि समता नहीं है तो हजार पदार्थ होने पर भी मन बेचैन, उदास और संतप्त बना रहता है । इन सबको मिटाने के लिए आवश्यक है समता की साधना | सास बहू में प्रतिदिन कलह होता रहता है । पूरा दिन तनाव में बीत जाता है । रोटी भी खाता है, ठंडा पानी भी पीता है, मकान भी एयर कंडीशन है, सब कुछ है, पर सास बहू में, बाप और बेटे में, भाई-भाई में कलह चलता है तो ऐसा लगता है सारा जीवन दुःख में बीत रहा है, मानसिक शान्ति नहीं है, समाधि नहीं है । अनेक लोग इस भाषा में कह भी देते हैं - इस जीवन से तो मरना अच्छा है। इस जीवन में क्या मिला ? दुःख, अशांति और कलह का जीवन कोई जीवन है ? व्यक्ति को सब कुछ सुविधा- सामग्री मिली किन्तु उसका भोग करने में जो शांति का वातावरण
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