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सामायिक समाधि
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रजःकणों को धुन डालता है, हिला डालता है, वैसे ही जो निर्जरा करने वाला है, वह अपनी सत्प्रवृत्ति के द्वारा कर्मरजों को धुन डालता है, प्रकम्पित कर, झाड़ कर साफ कर देता है । निर्जरा प्रकम्पन की प्रक्रिया है । इसमें व्यक्ति अवांछनीय प्रकम्पनों के प्रति वांछनीय प्रकम्पन पैदा कर, शक्तिशाली प्रकम्पन पैदा कर उसको समाप्त कर देता है, पुराने संग्रह को समाप्त कर देता है ।
सामायिक : निरोध की प्रक्रिया
दूसरी प्रक्रिया है संवर की । इससे प्रकम्पन बन्द हो जाते हैं । सामायिक संवर की प्रक्रिया है । इसमें प्रकम्पन निरुद्ध हो जाते हैं, शान्त हो जाते हैं । जैसे ही मन समभाव की स्थिति में जाता है, वैसे ही प्रकम्पन बन्द हो जाते हैं । जब प्रकम्पन बन्द हो जाते हैं तब चाहे लाभ हो या अलाभ, सुख हो या दुःख, निन्दा हो या प्रशंसा, हमारे लिए कुछ भी नहीं हैं । क्योंकि उन प्रकम्पनों को ग्रहण करने वाले द्वार को हमने बन्द कर दिया । खिड़की बन्द कर दी, अब चाहे आंधी चले या तूफान, भीतर कुछ भी नहीं आयेगा । समायिक समाधि प्रकम्पनों को बन्द कर देने की प्रक्रिया है । उस समय में ऐसी समाधि घटित होती है कि जिस समाधि पर कोई आंच नहीं आती । कोई भी बाहर की स्थिति उसमें क्षोभ पैदा नहीं कर सकती । प्रकंपन का मूल कारण
सामायिक के लिए तीन बातें जरूरी हैं१. मन की शिथिलता-मन को विकल्पों से खाली कर देना । २. शरीर की शिथिलता-शरीर को तनावों से मुक्त कर देना । ३. प्रकम्पनों का अग्रहण ।
शरीर की चंचलता ही सारे प्रकम्पनों का मूल कारण है । तत्त्व की दृष्टि से विचार करें तो प्रवृत्ति वास्तव में एक ही है और वह है शरीर की । हम कहते हैं कि प्रवृत्तियां तीन हैं-मन की प्रवृत्ति, वचन की प्रवृत्ति और शरीर की प्रवृत्ति । श्वास की प्रवृत्ति को हमने प्रवृत्ति माना ही नहीं । यथार्थ में प्रवृत्तियां तीन नहीं हैं, एक ही है शरीर की प्रवृत्ति । मन और वचन की जो प्रवृत्ति है, उसका काम है-शरीर के द्वारा प्राप्त सामग्री को छोड़ देना। इसलिए
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