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________________ २२ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक प्रकम्पन से जुड़ गया, तब सुख या दुःख का अनुभव होता है । सामायिक है प्रकंपनों का निरोध प्रकम्पन वस्तु के योग से भी पैदा हो सकता है, कल्पना से भी हो सकता है और वैज्ञानिक पद्धति से भी हो सकता है, यान्त्रिक पद्धति से भी हो सकता है । एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक 'साइटर' ने प्रकम्पनों का सूक्ष्मतम अध्ययन किया । उसने उन प्रकम्पनों के आधार पर एक यन्त्र बनाया। उसका नाम रखा 'विद्युत् वाहक इलेक्ट्रॉन' । उस यन्त्र से सम्बन्धित एक तार चूहे के माथे में लगाया और एक बिजली का बटन उसकी टांग के पास लगा दिया । बटन को दबाते ही चूहे में हरकतें होने लगीं। परिणाम यह आया कि चूहों को देखकर उसके मन में जैसे प्रकम्पन पैदा होते थे, वैसे ही प्रकम्पन बटन के दबाने से होने लगे । वैज्ञानिक दिन भर बटन दबाता रहा और चूहे में वैसी हरकतें होती - रहीं । अन्त में चूहा थककर चूर हो गया। इसका निष्कर्ष यह हुआ कि घटना से जो प्रकम्पन पैदा होते हैं, वैसे ही प्रकम्पन यन्त्रों के द्वारा भी पैदा किए. जा सकते हैं । कल्पना में जो रस है, वह सही घटना में नहीं है । कल्पना में होता क्या हैं ? जो सही घटना में प्रकम्पन पैदा होते हैं, वे कल्पना में भी पैदा होते हैं | ‘मानसिक भोग' और क्या है ? वह प्रकम्पन ही तो है । सुख का अनुभव होता है प्रकम्पन से; फिर चाहे वह प्रकम्पन यथार्थ वस्तु से हो या विद्युतवाही किसी यंत्र से हो । मुख्य बात है प्रकम्पन पैदा करने की । हमारे भीतर भी प्रकम्पन पैदा होते हैं और उनके साथ ध्यान जुड़ने के कारण हमें सुख-दुःख की अनुभूतियां होती हैं । सामायिक का अर्थ है - प्रकम्पनों को समाप्त करना । प्रकम्पनों को बन्द कर देना, उत्पन्न न होने देना, यह है समभाव | इसे 'संवर' भी कहा जा सकता है । निर्जरा : प्रकम्पन की प्रक्रिया साधना की दो स्थितियां हैं - संवर और निर्जरा । निर्जरा के लिए एक शब्द है- विधूननम् - प्रकम्पित कर देना । जैसे पक्षी पंखों को हिलाकर सारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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