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सामायिक समाधि
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से विषाद की मात्रा कितनी बढ़ी है । यह सम्भव कैसे हो सकता है कि व्यक्ति दुःख-सुख में सम रहे ? कभी सम्भव नहीं है । सुख होगा तो मन आह्लाद से भर जाएगा, विकसित हो जाएगा । दुःख होगा तो मन विषण्ण हो जाएगा, सिकुड़ जाएगा । देखने वाले को भी पता लग जाएगा कि अभी चेहरे पर क्या भाव उभर रहे हैं ? क्या घटित हो रहा है ? आकृति भी वही है किन्तु भिन्नभिन्न स्थितियों में उसकी अवस्था भिन्न-भिन्न हो जाती है । आदमी कुछ और । का कुछ और बन जाता है ।
कैसे सहे महावीर ने कष्ट ?
कुछ दिन पहले की बात है । एक आदमी मेरे पास बैठा था । उसको देखते ही दूसरे व्यक्ति ने कहा- 'लगता है, तुमने काफी पैसा कमाया है ।' उसने कुछ पूछा नहीं किन्तु उसकी आकृति बता रही थी कि उसने पैसा कमाया है। सचमुच उसने काफी पैसा कमाया था । आकृति देखकर बताया जा सकता है कि व्यक्ति घाटे में है या लाभ में । चेहरा स्वयं बता देता है, आकृति स्वयं बता देती है | हम यह कैसे मानें कि सुख-दुःख, लाभ-अलाभ आदि द्वन्द्वों में व्यक्ति सम रह सकता है ? व्यवहार की भूमिका में यह विषमता अवश्य रहेगी । जब लाभ होगा तो प्रसन्नता फूट पड़ेगी और जब अलाभ होगा तो विषाद आ ही जाएगा। सुख होगा तो शरीर विकस्वर हो जाएगा और दुःख होगा तो सिकुड़ जाएगा । यह सामान्य बात है । भगवान् महावीर ने कहा- इनमें सम रहने वाला सामायिक कर सकता है । वे कोरी कल्पना की बात तो नहीं कह सकते । मैं कई बार सोचता हूं कि महावीर को इतने कष्ट झेलने पड़े, I क्या कोई शरीरधारी व्यक्ति ऐसे कठोर कष्टों को झेल सकता है ? क्या ऐसी स्थिति में कोई समभाव में रह सकता है ? एक आदमी ने उनके कानों में कीलें ठोंकी, गालियां दीं, फिर भी वे प्रसन्न रहे, हंसते रहे । जरा भी उनमें आवेश नहीं आया । यह कैसे सम्भव हो सका ? किन्तु सोचते-सोचते मुझे लगा कि सविकल्प मन में यह सम्भव नहीं है । मन की सविकल्प अवस्था में लाभ में सुख होगा, प्रसन्नता होगी और अलाभ में विषाद होगा, विषण्णता होगी । सुख होने पर आह्लाद की अनुभूति होगी और दुःख होने पर कष्ट की अनुभूति होगी। विकल्पयुक्त मन में यही होगा, और कुछ हो नहीं सकता ।
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