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________________ सामायिक समाधि सकती । साधना के क्षेत्र में सर्वाधिक मूल्य किसी का है तो वह है समता का । उससे अधिक किसी का मूल्य नहीं है । सामायिक है कषाय का विवेक I हम साधक हैं | साधना करते हैं । साधना का प्रयोजन है - कषाय का विवेक, कषाय को दूर करना । कषाय का अर्थ है - क्रोध, मान, माया और लोभ | यदि हम साधना करते हैं और उसकी निष्पत्ति के रूप में कषाय का विवेक नहीं होता, कषाय की कमी नहीं होती तो मान लेना चाहिए कि साधना फलित नहीं हो रही है । यदि कषाय क्रमशः दूर होते चले जा रहे हों तो मान लेना चाहिए कि साधना ठीक दिशा की ओर गतिशील है, वह क्रमशः सफलता की ओर बढ़ रही है | साधना के फलस्वरूप स्थूल और सूक्ष्म शरीर की विशिष्ट प्रक्रियाएं भी जागृत होती हैं; किन्तु यह अत्यन्त गौण बात है । इसका कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं है । आध्यात्मिक साधना का सर्वाधिक या एकमात्र मूल्य है- कषाय का विवेक, कषाय का विलगाव, कषाय का उपशमन, कषाय की शांति | यही है समता या सामायिक । एक शब्द में कषाय की कमी ही सामायिक है । १७ अर्थ सावद्य का समता का उपासक ‘सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि - ' इस पाठ का उच्चारण करता है । इसका अर्थ है - 'मैं समस्त सावद्य योग ( प्रवृत्ति) का प्रत्याख्यान करता हूं, उससे अपने आपको अलग करता हूं ।' सावध योग का अर्थ है- पापकारी प्रवृत्ति | वह कौन सी प्रवृत्ति है, जो पापकारी है ? जो प्रवृत्ति क्रोध, मान, माया और लोभ से प्रेरित होती है, वह पापकारी प्रवृत्ति है, सावद्य योग है | आचार्य मलयगिरि के अनुसार अवद्य का अर्थ है-क्रोध, . मान, माया और लोभ । जो अवद्य सहित प्रवृत्ति होती है, वह है सावद्य प्रवृत्ति । मूल है कषाय । कषाय सहित प्रवृत्ति सावद्य होती है । उसका विवेक करना, निरोध करना, वह है सामायिक, समभाव । न इधर झुकाव, न उधर झुकाव । दोनों पलड़े बराबर | जैसे तराजू के दोनों पल्ले बराबर होते हैं, वैसे ही हमारी प्रवृत्ति के दोनों पल्ले जब बराबर होते हैं, न राग और न द्वेष, कहीं कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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