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सामायिक समाधि
सड़क कीचड़ से लबालब भरी थी । एक मोटर आयी और उसमें फंस गयी । कार-चालक ने इधर-उधर देखा । एक आदमी दौड़ा-दौड़ा सहायता के लिए आया । दोनों ने जोर लगाया, मोटर कीचड़ से बाहर निकल गयी। मोटर-चालक ने उस आदमी को पांच रुपये दिए और पूछा-'तुम्हें तो बहुत कमाई हो जाती होगी ? दिन से भी रात को अधिक ।' वह बोला-'नहीं, बाबूजी ! रात में कोई कमाई नहीं होती, दिन में ही कुछ मिल जाता है ।' 'अरे ! ऐसा क्यों ? रात को तो मोटरें अधिक आती होंगी ?' उसने कहा-'बाबूजी ! रात को तो मैं मेहनत करता हूं | सड़क पर पानी डालता हूं | सुबह तक कीचड़ तैयार हो जाता है और फिर आने-जाने वाली मोटरें फंसने लग जाती हैं, मेरी कमाई प्रारम्भ हो जाती है। - आप देखें- कीचड़ बनाने वाला और कीचड़ से निकालने वाला एक ही व्यक्ति है | वही फंसाता है और वही निकालता है ।' समता और विषमता का हेतु - हम भी ऐसा ही करते हैं । स्वयं ही अपनी कार को फंसाते हैं और स्वयं ही उसे निकालते हैं। दोनों साथ-साथ चल रहे हैं । हम स्वयं ही विषमता पैदा करते हैं और स्वयं ही समता का प्रयत्न करते हैं । विषमता पैदा करने वाला भी कोई दूसरा नहीं है और समता पैदा करने वाला भी कोई दूसरा नहीं है । हम समता का प्रयत्न तब करते हैं जब विषमता की मात्रा बढ़ जाती है, वह हमें सताने लग जाती है, तब समता की बात सोचते हैं । हमें लगता है कि समता अच्छी है, उससे बढ़कर दुनिया में कोई अच्छी बात नहीं हो
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