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________________ १४ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक हैं । इन स्थितियों में सम न रहें, इनके अनुसार चलायमान होते रहें, आन्दोलित होते रहें तो बड़ी विषम स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अच्छा जीवन जीने का सूत्र यही है कि हर स्थिति में शान्त रहें और शान्त वही रह सकता है, जिसने सामायिक की साधना की है । यह तो नहीं कहा जा सकता कि सामायिक करने वाला हर आदमी वीतराग बन जाएगा, किन्तु इससे इतना जरूर होगा कि वह ऐसी जीवन शैली अपना लेगा, ऐसे मार्ग पर अपने चरण बढ़ा लेगा, जहां समता की सिद्धि उसे प्राप्त हो जाएगी। जिसने समता साध ली, जिसके जीवन में उच्चावच भाव नहीं रहा, उससे बड़ा आदमी इस दुनिया में दूसरा और कोई नहीं होगा | व्यावहारिक जीवन में उससे ज्यादा सुखी आदमी दूसरा नहीं हो सकता । जिसकी समता सिद्ध हो जाती है, वह जीने मरने से भी प्रभावित नहीं होता । आचार्य भिक्षु के जीवन में यह समता सिद्ध हो चुकी थी, सामायिक पक गई थी इसीलिए वे लाभ-अलाभ, सुख-दुःख और जीवन मरण में तटस्थ रह पाए । पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन के बारे में बड़ी मार्मिक बात लिखी है। एक तरह से वह सामायिक की सिद्धि से निकला हुआ स्वर है । आपने लिखामैंने अपने जीवन में जितना सम्मान पाया, उतना शायद बहुत कम लोग पाते हैं और जितना अपमान देखा, उतना बहुत कम लोग देख पाते हैं । रायपुर में लोगों ने देखा- कितने पुतले जलाए गए थे । कोरा सम्मान ही सम्मान मिलता तो अहंकार आने को बड़ी संभावना थी और कोरा अपमान ही अपमान मिलता तो हीन भावना से ग्रस्त हो जाने की संभावना थी । सम्मान और अपमान का ऐसा संतुलन रहा कि न तो अहंकार आया और न किसी प्रकार की हीनभावना ही पनपी । सबसे बड़ी समस्या जिसने सामायिक की सिद्धि कर ली, वही ऐसी अनुभूति कर सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी समस्या गरीबी नहीं है । यह एक समस्या तो है किन्तु सबसे बड़ी समस्या नहीं है। मेरी दृष्टि में सबसे बड़ी समस्या है असंतुलन की । न जीवन में संतुलन, न व्यवस्था में संतुलन । मनुष्य ने अपना संतुलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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