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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
माया और लोभ को मिटाने की साधना कर रहा हूं।... शल्य मुक्ति की साधना कर रहा हूं | साधना के इस सुन्दर सूत्र का नाम ही सामायिक है । आवश्यक है अर्थबोध
बहुत सारे लोग सामायिक करते हैं, किन्तु इस ओर ध्यान नहीं देते कि वे क्या कर रहे हैं । जब कुछ करते हैं तब यह पता तो होना ही चाहिए कि क्या कर रहे हैं । अगर इस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो उस तोते की सी स्थिति होगी, जो अफीम के डोडे पर चोंच मारता हुआ कहे जा रहा था-अफीम खाना मना है । क्योंकि उसने मात्र सीखा था, रटा था, अर्थ नहीं जान सका था ।
सामायिक करते समय सामायिक के अर्थ को विस्मृत नहीं करना चाहिए । सामायिक की साधना बहुत पवित्र साधना है । अठारह पापों से मुक्त होने की, उनसे दूर होने की साधना है । जो व्यक्ति अड़तालीस मिनट तक प्रतिदिन कई बार इसका अभ्यास करता है, उसका प्रभाव उसके जीवन पर पड़े बिना नहीं रहेगा । सामायिक एक सुदृढ़ आलम्बन है । जो इसका सहारा लेता है, वह काफी बुराइयों से बच जाता है । ऐसा न्यायाधीश : ऐसा पुत्र
ब्रिटिश शासक हेनरी चतुर्थ चतुर और न्यायी शासक था । एक बार सम्राट् के पुत्र ने कोई अपराध किया। मामला न्यायालय तक गया । न्यायाधीश ने मामले की गंभीरता को पहचाना और हेनरी के पुत्र को कारावास का दण्ड सुना दिया। सम्राट के पास यह समाचार पहुंचा । सम्राट तत्काल हाथ जोड कर बोला-प्रभो ! मैं धन्य हूं, मुझे ऐसा न्यायाधीश मिला, जो न्याय करना जानता है । मैं इस बात के लिए भी अपने को धन्य मानता हूं कि मुझे ऐसा पुत्र मिला, जो कानून का सम्मान करना जानता है, उस पर अमल करना जानता है । अरुचि का रहस्य
अमल करना, क्रियान्विति करना, आचरण में लाना बहुत महत्त्वपूर्ण है । पूज्य गुरुदेव भिवानी में विराज रहे थे । एक सम्मानित परिवार के मुखिया
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