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सामायिक : शांतिपूर्ण जीवन का सूत्र
हजारों लोग जिसकी प्रतिदिन आराधना करते हैं, क्या उसके बारे में भी चर्चा आवश्यक है ? जैन श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सामायिक करते हैं, अपने बच्चों को भी वे सामायिक की प्रेरणा देते हैं । प्रश्न है-वह सामायिक क्या है ? किसे कहते हैं सामायिक ? सामायिक स्वीकार करते समय एक श्रावक बोलता है- 'करेमि भंते सामाइयं सावज्ज जोगं पच्चक्खामि ।' एक साधु सामायिक स्वीकार करता है तो प्रतिज्ञा करता है-सव्वं सावज्ज जोगं पच्चक्खामि । सावध योग के प्रत्याख्यान का नाम है सामायिक या समता | साधना का सुन्दर सूत्र
सावध योग की परिभाषा बहुत स्पष्ट है । अठारह पाप सावध हैं । इन अठारह पापों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
पहला वर्ग- प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह । दूसरा वर्ग- क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष । तीसरा वर्ग- कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर-परिवाद, रति-अरति । चौथा वर्ग- माया-मृषा और मिथ्यादर्शन इन चार वर्गों में अठारह पाप समाहित हो जाते हैं ।
हम विचार करें- सामायिक करने वाला क्या छोड़ता है ? पांच आश्रव-प्राणातिपात आदि को छोड़ता है । क्रोध, मान, माया, लोभ और रागद्वेष को छोड़ता है । यदि इस अर्थ का ध्यान हो तो सामायिक करते समय एक स्पष्ट चित्र बनेगा कि मैं क्या कर रहा हूं | मैं क्रोध को उपशान्त करने की साधना कर रहा हूं। मैं अहंकार को शांत करने की साधना कर रहा हूं।
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