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________________ सामायिक धर्म नाणं- दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता, इस सचाई को समझने से पहले इस सचाई को समझना होगा । 'णोकसायिस्स दंसणं- कषायी को दर्शन उपलब्ध नहीं होता । जब तक अनंतानुबंधी कषाय को क्षीण नहीं कर पाएंगे, तब तक सम्यक् दर्शन की प्राप्ति दुर्लभ बनी रहेगी । इसका अर्थ है- मोक्ष तक पहुंचने के लिए सम्यक् दर्शन को समझना है, सम्यक् ज्ञान को समझना है, सम्यक् चारित्र को समझना है, किन्तु इन सबसे पहले इनकी पृष्ठभूमि में छिपे हुए कषाय को समझना है । यह एक पूरी श्रृंखला है- अनंतानुबंधी कषाय है तो सम्यक् दर्शन नहीं हो सकता | सम्यक् दर्शन नहीं है तो सम्यक् ज्ञान नहीं हो सकता । सम्यक् ज्ञान के बिना सम्यक् चारित्र नहीं हो सकता | मोक्ष की साधना के लिए इस समग्र क्रम को जानना आवश्यक है । यदि यह क्रम समझ में आ जाता है तो मोक्ष की साधना का, अध्यात्म और सम्यक् दर्शन का गुर हमारे हाथ में आ जाता है । चारित्र सामायिक हमारे आचरण में समता आए । परिवार में समता का प्रयोग हो । आनन्द आएगा । पिता के चार पुत्र हैं । एक पर मोह करे और जो देना चाहे, उसे ही दे तो घर में कलह हो जाएगा । सामायिक को रूढ़ मत बनाइए | सामायिक करने वाला किसी के साथ असमानता का व्यवहार नहीं करता । वह दूसरे के हक को नहीं छीन सकता | सामायिक का प्रतिबिम्ब हमारे सामान्य जीवन में आना चाहिए। भिक्षु स्वामी ने तेरापंथ का विधान लिखा । उसकी विशेषता है कि उन्होंने समता को विधान का मूल आधार बनाया । एक पढ़ा-लिखा साधु है, दूसरा केवल संयम पालन करने वाला है । भिक्षा में यदि एक रोटी आती है तो दोनों साधु आधी-आधी कर लो । साधु सोते हैं, उसका भी क्रम है । हर वस्तु की मर्यादा है। सामायिक करने वाले सोचते हैं- सामायिक करेंगे तो परलोक सुधरेगा । वर्तमान यदि कलह, झगड़े में बीतता है तब परलोक कैसे सुधरेगा ? सामायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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