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सामायिक धर्म
है, वह सबको जान लेता है।
आचार्य कुंद-कुंद ने केवली की परिभाषा की है- जो अपने आपको जान लेते हैं, वे केवली हैं । केवली सबको जानता है, यह व्यवहार की बात है । निश्चय में वह अपनी आत्मा को ही जानता है ।
- जो एक को जानता है, वह सबको जानता है । अपने आपको तभी जान सकते हैं जब अपने से भिन्न को भी जानेंगे । दूसरों को बिना जानें एक को कैसे जाना जा सकता है ? अस्तित्ववाद ने विद्यार्थी जगत् को प्रभावित किया है | वह कहता है, जब तक अपने अस्तित्व को नहीं जानते तब तक कुछ नहीं जानते । हर व्यक्ति को अपने बारे में ही सोचना चाहिए । जिसने स्वयं के लिए सोचा, उसने भाग्य की कुंजी अपने हाथ मे ले ली । दर्शन सामायिक
जैन आगम में कहा गया-नादंसणिस्स नाणं- दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता । दर्शन मिथ्या है तो ज्ञान भी मिथ्या है । दर्शन सम्यक् हैं तो ज्ञान भी सम्यक् है । इसका अर्थ है कि ज्ञान दर्शन पर निर्भर है | पर दर्शन क्या
एक वह शक्ति है, जिसके आधार पर हमारी धारणाएं बनती हैं, मान्यताएं बनती हैं और एक वह शक्ति है, जिससे हम मानते हैं, जानते हैं। पहले धारणा, फिर मानना या जानना । हमारे सामने एक सूत्र प्रस्तुत हो जाता है- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।
ज्ञान का काम है जानना । अज्ञान का काम है न जानना अज्ञान एक आवरण है, पर्दा है । दर्शन का संबंध मूढ़ता से है । मूर्छा व्यक्ति की चेतना को विकृत बना देती है । हम विकृत चेतना से जो जानते हैं, वह ज्ञान का आवरण हटने पर भी सही नहीं होगा । सूरज उगा हुआ है, आंखें साफ हैं, पर धुंधलका छाया हुआ हैं | कुछ भी सम्यक् दिखाई नहीं देगा । राजस्थान में कभी-कभी भयंकर आंधी आती है । उसे काली-पीली आंधी कहा जाता है । सारा आकाश धूलमय बन जाता है । वह आंधी इतनी सघन होती है
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