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________________ सामायिक धर्म श्रुत सामायिक जो क्षण हमारे शान्ति के बीच बीतते हैं, वह सामायिक है । तत्त्व की अन्वेषणा, सत्य की खोज और आत्मा को जानने का प्रयत्न करते हैं, वह सब सामायिक है। ___कोऽहं' मैं कौन हूं ? जो मनुष्य है, वह एक दिन समाप्त होने वाला है। ये बच्चे, जवान और बूढ़े कुछ वर्षों के लिए हैं; पुद्गल कभी नहीं मिटते, जितने हैं, उतने ही रहेंगे; केवल अवस्था परिवर्तन होता है । संसार में जीव और अजीव जितने थे, उतने ही रहेंगे और उतने ही हैं। सबका अस्तित्व असंदिग्ध है । मनुष्य ही एक ऐसा अभागा प्राणी है, जो अपने अस्तित्व में सन्देह करता है और वह यह सोचता है कि कौन जाने परलोक है या नहीं ? प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर कोई नहीं कह सकता कि परलोक है या नहीं, फिर भी अशुभ आचरण नहीं करना चाहिए । एक कवि ने कहा है कि परलोक के संदिग्ध होने पर भी अशुभ आचरण त्याज्य है । यदि वह नहीं है तो अशुभ के त्याग से कोई हानि नहीं होगी और यदि है तो बेचारा नास्तिक मारा जाएगा। संदिग्धेपि परे लोके, त्याज्यमेवाशुभं बुधैः । यदि नास्ति ततः किं स्यादस्ति चेद् नास्तिको हतः ॥ जोधपुर के मुसद्दी बच्छराजजी सिंघी डालगणी के पास आए और बोले-'मुझे आप पर तरस आता है । आप लोग सर्दी, गर्मी, भूख प्यास सब सहते हैं । बिना मतलब कष्ट सहते हैं, आगे-पीछे कुछ नहीं है ।' डालगणी ने उत्तर दिया-'कष्टों के लिए हम साधना नहीं करते हैं ।' साधना में कष्ट आए, उसे सहना हमारा धर्म है । संयम अच्छा है, वर्तमान में भी और भविष्य में भी । अगर तुम्हारा सिद्धान्त फलित हुआ तो हमने जो कष्ट सहा, वह व्यर्थ हो गया । अगर हमारा सिद्धान्त सही निकला तो तुम्हारा क्या होगा ?' बच्छराजजी बोले--'इतनी मार पड़ेगी कि धरती भी नहीं झेलेगी ।' यदि परलोक नहीं है तो कष्ट सहा, वह ऐसे ही गया । यदि परलोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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