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निर्द्वन्द्व चेतना है समता
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वह बीमार हो जाता है। बरसाती तूफानी या विमानी हवा की चपेट में आते ही जुकाम से पीड़ित हो जाता है । उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है ।
अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियां
एक प्रश्न है - अनुकूल परिस्थितियां कौन सी हैं, जो तनाव पैदा करती हैं ? लाभ, सुख, जीवन, प्रशंसा और सम्मान - ये पांच अनुकूल परिस्थितियां है | मनचाहा लाभ हो गया, आदमी बहुत खुश हो जाता है । सुख-सुविधा मिलती है तो आदमी बहुत खुश होता हैं। किसी ने कह दिया- तुम अभी पचास वर्ष जीयोगे, तुम्हारी आयु लम्बी है, जीवन अच्छा है। यह सुनकर वह बहुत खुश होता है । यदि कहा जाए - तुम जल्दी मर जाओगे तो उस पर क्या बीतती है ? वह अधमरा-सा हो जाता है। किसी ने दो शब्द प्रशंसा के कहे, आदमी फूल जाता है। सम्मान मिलता है, सुख होता है। ये अनुकूलता की स्थितियां हैं ।
अलाभ, दुःख, मरण, निन्दा और अपमान - ये पांच प्रतिकूलता की स्थितियां हैं ।
धर्म है सम रहना
एक और अनुकूलता की पांच परिस्थितियां हैं, दूसरी ओर प्रतिकूलता की पांच परिस्थितियां हैं। इन दोनों में सम रहना कितनी कठिन साधना है । धर्म का अर्थ है- इन दोनों परिस्थितियों में सम रहना । जहां विषमता आई, धर्म खण्डित हो गया । यह धर्म कितना वैज्ञानिक और कितना सार्थक है । दुनिया में ऐसे आदमी कम हैं, जो इन परिस्थितियों में सम रह सकें । एक भाई ने कहा - तनाव बहुत रहता है। मैंने पूछा- कारण क्या है ? उसने बताया - व्यापार ठीक नहीं चल रहा है। लाभ नहीं है, अलाभ हो रहा है । तनाव का कारण यही है । जैसे अलाभ पैदा हुआ, तनाव पैदा हो गया। आप यह न सोचें कि अनुकूलता में तनाव पैदा नहीं होता है । उसमें भी तनाव होता है । यदि लाभ बहुत हो गया तो साथ-साथ में तनाव भी बहुत बढ़ जाएगा | वह तनाव इस कारण होगा कि जो लाभ हुआ है, उसे कैसे बचाएं ।
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