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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ आदि । एक संस्था से अनेक प्रकोष्ठ जुड़े हुए होते हैं। हमारे मस्तिष्क में भी बहुत सारे प्रकोष्ठ हैं । एक प्रकोष्ठ तनाव पैदा करने वाला है। उसे न बदला जाए, शिक्षित न किया जाए, तब तक तनाव मिटता नहीं है । हमें मस्तिष्क के उस प्रकोष्ठ को पकड़ना है, जो तनाव को पैदा करता है और उसे ध्यान के द्वारा शिक्षित करना है, प्रशिक्षण देना है, जिससे कि तनाव पैदा न हो, और हो तो तत्काल निकल जाए, उसका रेचन हो जाए।
प्रशिक्षण के लिए ध्यान बहुत उपयोगी है । जो शिक्षा आज़ चल रही है, वह तनाव को विसर्जित करने की शिक्षा नहीं है । वह उस मस्तिष्कीय प्रकोष्ठ को प्रशिक्षित करने की शिक्षा नहीं है, जो तनाव का जनक है । आज की शिक्षा व्यक्ति को तार्किक और बौद्धिक बनाती है । अधिक तार्किकता
और बौद्धिकता कभी-कभी तनाव भी पैदा कर देती है । धर्म का उपयोग
तनाव क्यों पैदा होता है ? मन में कोई एक बात आ गई, भावना में . कोई बात समा गई और तनाव पैदा हो गया । शारीरिक तनाव शारीरिक श्रम से पैदा हो जाता है । थोड़ा विश्राम करते हैं, मिट जाता है । जटिल है मानसिक तनाव और उससे भी अधिक जटिल है भावात्मक तनाव । ये दोनों तनाव बहुत जटिल होते हैं । इन दोनों तनावों को मिटाने के लिए मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना आवश्यक है । इस संदर्भ में धर्म का बहुत बड़ा उपयोग है। धर्म का एक शब्द है समता | आजकल बहुत क्षेत्रों में समता शब्द चलता है । यह राजनीति के क्षेत्र में भी चलता है किन्तु यह मूल शब्द है धर्म का । इसका अविष्कार धर्म के लोगों ने किया था | समता का तात्पर्य है-अनुकूल
और प्रतिकूल, सर्दी और गर्मी-दोनों प्रकार की स्थितियों में सम रहना । गर्मी है, आदमी कमरे में आता है और सीधा बटन पर हाथ जाता है पंखा-चलाने के लिए । वह एक मिनट के लिए गर्मी को सहन नहीं करता । बहुत सर्दी है, तत्काल हीटर का प्रयोग करता है। वह उसे सहन नहीं कर सकता। जो व्यक्ति अपने जीवन में सर्दी और गर्मी सहन नहीं कर सकता, वह मजबूत आदमी नहीं बन सकता । ऐसा कमजोर रह जाता है कि एक ही चपेट में
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