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कर्म-फल भोगने की कला है सामायिक
'आप पीकदान मंगवाएं और उसमें थूककर देखें ।'.
सनत्कुमार ने पीकदान में थूका । उन्होंने देखा-लट और कीड़े किलबिला रहे हैं।
सनत्कुमार ने कहा-यह क्या हुआ ?
महाराज ! जिन सोलह बीमारियों को भयंकर माना जाता है, वे सारी की सारी एक साथ आपके शरीर में पैदा हो गई हैं | आपका सौन्दर्य नष्ट . हो चुका है।' परम आचरण है समता
चक्रवर्ती सन्न रह गए । उनका अहकार चूर-चूर हो गया । मन वैराग्य से भर गया । वे राज-पाट को छोड़कर मुनि बन गए । कठोर साधना कर अपने आपको भावित कर लिया ।
(एक व्यक्ति पचास दिन भूखा रह सकता है पर सामायिक की साधना नहीं कर सकता) सामायिक की साधना सबसे कठोर साधना है । आचार्य सोमदेव ने नीतिवाक्यामृत में लिखा-समता परमं आचरणं । परम आचरण है समता । सुख-दुःख आदि सब स्थितियों में सम रहने की साधना सहज नहीं है ।
सनत्कुमार सामायिक की साधना में निमग्न हो गए । एक ओर रूप का गर्व समाप्त हुआ तो दूसरी ओर समता की साधना में उत्कर्ष आ गया । धर्म की कला का निदर्शन
कहा जाता है-वही बूढ़ा ब्राह्मण वैद्य का रूप बना मुनि के सामने प्रस्तुत हुआ । उसने मुनि से निवेदन किया-मुनिप्रवर ! मैं कुशल चिकित्सक हूं । दूर से ही आपको देखकर जान गया हूं-आप बीमार हैं । आप कुष्ठ जैसे भयंकर रोग से ग्रस्त हैं ? आप आज्ञा दें, मैं आपकी चिकित्सा कर आपकी काया को कंचन बना दूंगा।
मुनि सनत्कुमार बोले-'वैद्यवर ! मुझे चिकित्सा की जरूरत नहीं है ।' वैद्य ने पुनः चिकित्सा का आग्रह किया ।
मुनि ने उसके आग्रह को स्वीकार करते हुए कहा-'वैद्यवर ! आप क्या चिकित्सा करेंगे?'
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