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________________ निःशस्त्रीकरण और सामायिक १४५ आती ? मरते समय जब प्राण निकलते हैं तब बड़ी कठिनाई होती है, बड़ी छटपटाहट होती है इसलिए तुम किसी को मत सताओ । मत मारो-यह बताकर मनुष्य के मन में करुणा का भाव पैदा किया गया, अनुकम्पा पैदा की गई। जब करुणा का विकास होता है तब वह न मारने तक ही सीमित नहीं रहता, आगे बढ़ जाता है । उसमें प्रेम का भाव बढ़ता है । जिस व्यक्ति में प्रेम और मैत्री का भाव विकसित है वह मैत्री का विकास करेगा प्राणी मात्र के लिए | जब तक पराएपन का भाव होता है, शत्रुता का भाव मन में छिपा रहता है तब तक मैत्री का भाव विकसित नहीं होता । प्रश्न शस्त्रीकरण का ____ . महावीर ने मनोवैज्ञानिक ढंग से इस बात को पकड़ा । यह व्यावहारिक बात है। बहुत साधारण लोगों में पहले सूक्ष्म बात नहीं कहनी चाहिए, इसीलिए शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में निःशस्त्रीकरण की स्थूल बात समझाई गई । पहले यही बताया गया-निःशस्त्रीकरण करो, किसी को मारो मत, सताओ मत | जैसे-जैसे यह संकल्प पुष्ट होगा वैसे-वैसे असंयम का भाव कम होगा । जैसेजैसे असंयम का भाव कम होगा वैसे-वैसे मैत्री बढ़ेगी, व्यक्ति अपने आप संयम की सीमा में अपना जीवन चलाएगा । ___ शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण-हमारे समक्ष ये दो शब्द हैं | आज भी शस्त्रीकरण एक समस्या है । सौ वर्ष पहले किसी ने यह सोचा भी नहीं होगा कि राजनीति के लोग कभी निःशस्त्रीकरण शब्द का उच्चारण करेंगे । जनता निःशस्त्रीकरण की बात पर आंदोलन करेगी, निःशस्त्रीकरण एक मुख्य मुद्दा बन जाएगा, पर विचार के विकास को रोका नहीं जा सकता है। एक व्यक्ति ने जो विचार दिया, शताब्दियों के बाद वह विचार दूसरों का अपना विचार बन जाता है । महावीर का यह निःशस्त्रीकरण का विचार २०वीं शताब्दी में अपने आप बलवान् बन रहा है । आज यह प्रश्न शक्तिशाली बन गया है कि अगर यह शस्त्रों की होड़ इसी गति से चलती रही तो न जाने क्या होगा ? श्रावक की आचार संहिता : निःशस्त्रीकरण भगवान् महावीर ने श्रावक के लिए जो व्रतों की आचार संहिता दी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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