________________
१४३
निःशस्त्रीकरण और सामायिक वास्तविक शस्त्र है असंयम
सब शस्त्रों के मूल में जो शस्त्र है, वह है भाव-शस्त्र । मिट्टी मिट्टी का शस्त्र है, इसे बाह्य शस्त्र माना गया है । यह वास्तविक शस्त्र नहीं है । वास्तविक शस्त्र है भाव-शस्त्र और वह है असंयम । प्राणी के अन्तःकरण में जो असंयम है, वही वास्तविक शस्त्र है और वही इन सारे शस्त्रों का निर्माण कर रहा है । अगर असंयम न हो तो कोई शस्त्र बनता ही नहीं। . आज निःशस्त्रीकरण का प्रश्न बलवान् बना हुआ है | शक्ति-सम्पन्न देश प्रक्षेपास्त्रों को कम करें, दूर या लघु मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों को कम करें, टैंकों को समाप्त करें, यह चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है पर इन सबके पीछे जो चर्चा होनी चाहिए, वह नहीं हो रही है । इन सबके मूल में असंयम है और उसे कम करने की चर्चा बहुत कम चलती है । केवल कुछ प्रक्षेपास्त्रों को कम करने से निःशस्त्रीकरण की बात सम्भव नहीं बनेगी । एक शासक शस्त्रों को कम करने की बात करता है तो दूसरा शासक शस्त्रों को बढ़ाने की बात करता है | जब तक असंयम को कम करने की ओर मनुष्य समाज का ध्यान आकर्षित नहीं होगा तब तक निःशस्त्रीकरण की बात सफल नहीं बन पाएगी । भगवान् महावीर ने भाव-शस्त्र पर, असंयम पर बहुत बल दिया । उन्होंने कहा-मूल जड़ को पकड़ो, असंयम का कम करो । असंयम कम होगा तो बन्दूकें, तोपें तलवारें मनुष्य के लिए खतरनाक नहीं बनेंगी।
क्या वध ही हिंसा है ?
एक प्रश्न उभरता है-भगवान् महावीर ने पूरे शस्त्र-परिज्ञा अध्ययन में छह काय के जीवों का वध न करने का उपदेश दिया पर मानसिक स्तर होने वाली हिंसा की कोई चर्चा नहीं की । ऐसा क्यों ? इसका कारण क्या है ? शस्त्र-परिज्ञा अध्ययन में यह नहीं बताया गया-कलह मत करो, निन्दा मत करो, चुगली मत करो, किसी के प्रति बुरे विचार मत लाओ । केवल मत मारो का ही निर्देश मिलता है । कर्म का समारम्भ मत करो यानी वध मत करो । उन्होंने वध को ही क्यों पकड़ा ? क्या वध ही हिंसा है ? क्या प्रमाद हिंसा नहीं है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org