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निःशस्त्रीकरण और सामायिक
शस्त्र और हिंसा को पर्यायवाची माना जा सकता है । जहां-जहां शस्त्र है, वहां-वहां हिंसा है । जहां-जहां अशस्त्र है वहां-वहां अहिंसा है । जब प्रस्तरयुग था तब पाषाण के अस्त्र बने, पत्थर के शस्त्र बने । कभी मिट्टी का ढेला फेंका गया, वह भी एक शस्त्र था । लोह का युग आया, लोहे के शस्त्र बने, तलवारें बनीं । बारूद को युग आया, बन्दूकें बनी, गोलियां बनीं, तोपें बनीं। क्रमशः शस्त्र का विकास होता चला गया । विकास होते-होते अणुबम और हाइड्रोजन बम का युग आया, अणु-शस्त्र बने, बनते चले जा रहे हैं। मूल शस्त्र है भाव
इन शस्त्रों का विकास क्रमशः हुआ है पर एक शस्त्र स्थाई है, जो पहले भी था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा । वही शस्त्र इन सब शस्त्रों का निर्माण कर रहा है | वह कभी बदलता नहीं है, स्थाई है और वह है असंयम | महावीर की भाषा में वह भाव-शस्त्र है । आचारांग सूत्र में षड्जीवनिकाय के लिए नाना प्रकार के शस्त्रों का निरूपण किया गया है। आज एक सामान्य आदमी शस्त्र शब्द कहते ही तलवार, बन्दूक या लाठी पर गौर करेगा, पानी एक शस्त्र है, यह कल्पना वह नहीं कर सकता | महावीर ने कहा-पानी मिट्टी का शस्त्र है । वायु अग्नि का शस्त्र है । महावीर ने बहुत गहरे में जाकर शस्त्रों का सूक्ष्मता से प्रतिपादन किया । उनकी भाषा में जो शस्त्र है, उसकी सूक्ष्मता की कल्पना तक पहुंचने में दार्शनिकों को भी समय लगा है | हो सकता है, वैज्ञानिकों को उस गहराई तक पहुंचाने में कई शताब्दियां और लग जाएं ।
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