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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया
समता के ध्येय को उपलब्ध करने के लिए जीवन में सामायिक की घटना घटित होनी आवश्यक होती है । इसकी संपूर्ति के लिए चारों प्रकार की शक्तियों का उपयोग करना होता है
१. कल्पना शक्ति २. इच्छा शक्ति ३. एकाग्रता शक्ति ४. तन्मयता की शक्ति
जब ये चारों शक्तियां साधक को उपलब्ध हो जाती हैं, तब जीवन में सामायिक अवतरित होती है । यह केवल सामायिक की ही प्रक्रिया नहीं है । आप जो भी ध्येय बनाएं, जो भी चित्र बनाएं, जिसको उपलब्ध होना चाहते हैं, उसकी यही प्रक्रिया है । इसी प्रक्रिया के द्वारा आप जो चाहें, वह साध सकते हैं, उसे उपलब्ध कर सकते हैं । यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। ध्येय की दिशा में
हम प्रेक्षा का अभ्यास करते हैं । हमारा ध्येय है-चैतन्य का अनुभव करना । यह ध्येय तो हमने चुन लिया किन्तु प्रेक्षा-ध्यान में हम सबसे पहले चमड़ी को, फिर हड्डियों को, फिर मांस को, फिर मज्जा और रक्त को, फिर
और-और चीजों को देखते हैं। शरीर में जितनी गंदगी है, उसको देखना प्रारंभ करते हैं। ध्येय तो है आत्मा के अनुभव का और देखते हैं दूसरी-दूसरी चीजों को । यह विरोधी-सा लगता है किन्तु यह विरोधी बात नहीं है । दिशा का भटकाव नहीं है। सही दिशा में हमारी गति का क्रम है । हमें चैतन्य का अनुभव करना है । चैतन्य क्या आकाश से टपकता है ? हम बन्दर तो नहीं हैं, जिसने मगरमच्छ से कहा था कि तुम मेरा कलेजा चाहते हो पर मैं तो अपने कलेजे को साथ लेकर नहीं फिरता । उसे मैं वृक्ष पर टांग आया हूं | आदमी बन्दर नहीं है | वह. नहीं कह सकता कि मैं मेरे अध्यात्म को, मैं मेरी सामायिक को कहीं अन्यत्र रखकर आया हूं | आदमी विकसित चेतना वाला प्राणी है । वह बन्दर की तरह अल्प विकसित प्राणी नहीं है।
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