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शक्ति की श्रेयस् यात्रा और सामायिक
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इच्छा शक्ति
इसके पश्चात् संकल्पशक्ति का उपयोग करें, इच्छाशक्ति का उपयोग करें । जो हमारी भावना है उसमें प्रबलता लाएं । भावना में प्रबलता का नाम ही इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति या दृढ़ निश्चय है । जब इच्छाशक्ति दृढ़ और प्रबल होती है तब 'बनने' की दिशा में गति प्रारंभ हो जाती है । इच्छाशक्ति के द्वारा विचारों में ऐसे प्रकंपन पैदा होते हैं कि हमारा परिणमन प्रारम्भ हो जाता है । न केवल हमारे विचारों में प्रकंपन शुरू होता है किन्तु आकाशमडंल भी प्रकंपित हो उठता है | वायुमंडल में प्रकंपन होते हैं और वह घटित होने लग जाता है, जो होना है |
हम कभी-कभी सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति ने भगवान् का साक्षात्कार कर लिया । कैसे किया ? -यह एक प्रश्न है । जिस व्यक्ति के मन में राम या कृष्ण का चित्र स्पष्ट था, उसने राम या कृष्ण का साक्षात् कर लिया । यह साक्षात् उसी रूप में होता है, जिस रूप में व्यक्ति ने महावीर, राम या कृष्ण को देखा है, जाना है, समझा है । जिस व्यक्ति के मन में आचार्य भिक्षु का चित्र स्पष्ट था, उस व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु के दर्शन कर लिये । न जाने कितने भक्त कितने भगवानों को देख लेते हैं । वे देखते उसी भगवान् को हैं, जिसका चित्र मन में स्पष्ट होता है । दूसरे भगवानों को नहीं देखा जा सकता । इसका तात्पर्य यही है कि पहले हमने एक चित्र बनाया । फिर कल्पनाशक्ति या संकल्पशक्ति के द्वारा वायुमंडल को इतना आन्दोलित कर दिया, इतनी तरंगें पैदा कर दी कि सारा वायुमंडल प्रकंपित हो उठा और उसमें से जो हमारा इष्ट था, उसकी आकृति हमारे सामने स्पष्ट हो गयी । यही हमारा साक्षात्कार है। एकाग्रता
तीसरी शक्ति है-एकाग्रता | उसका भी उपयोग करें। हम जो होना चाहते हैं, उसी की ओर मन की सारी शक्ति को प्रवाहित कर दें । भटकाव को मिटा दें ! मन की शक्ति जब इधर-उधर दौड़ती है, एक लक्ष्य की ओर प्रवाहित नहीं होती है तो सफलता नहीं मिल सकती | मन की ऊर्जा जब एक दिशागामी होती है तब हम जो बनना चाहते हैं, वह बन जाते हैं । ‘एगायणं
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