SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक मन की शक्ति का प्रयोग हम सामायिक को उपलब्ध करने के लिए मन की शक्तियों का प्रयोग करें | मन की शक्ति का प्रयोग अनावश्यक नहीं है । वह भ्रम नहीं है । मन की पहली शक्ति है-कल्पना । कल्पना की शक्ति का भी महत्त्व है । कल्पना-शक्ति का उपयोग किए बिना कोई भी आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता | ध्यान के अभ्यास-काल में हम बार-बार कहते हैं-"कल्पना मत करो, विकल्प मत करो।" किन्तु काम के समय कल्पना की बहुत अपेक्षा होती है । निर्विकल्प शक्ति के द्वारा कल्पनाशक्ति का विकास होता है | आप यह न मानें कि निर्विकल्प दशा में और कल्पना की मनोदशा में कोई सर्वथा विरोध है । उनमें सर्वथा विरोध नहीं है । ध्यान-काल में कोई विकल्प न करें, कोई कल्पना न करें शक्ति के संवर्धन के लिए | ध्यानमुक्त काल में कल्पना करें । दोनों जरूरी हैं। ध्यान के विकास के लिए कल्पना करना बहुत जरूरी है । ध्यान में बठने से पूर्व कल्पना करनी चाहिए । अर्हत् की कल्पना करें। मन में एक स्वस्थ आकृति का निर्माण करें | जब तक कोई आकृति स्पष्ट नहीं होती तब तक काम आगे नहीं बढ़ सकता | सबसे पहले कल्पना करनी होती है, एक चित्र का निर्माण करना होता है कि यह बनाना चाहता हूं। ध्यान में यह क्षमता है कि वह आपको अपने संकल्प के अनुसार ढाल सकता है । जैसा चाहें वैसा बनें-इसमें ध्यान माध्यम बनता है । एक व्यक्ति चाहता है कि मैं अमुक व्यक्ति को पीड़ित करूं । ऐसी शक्ति भी ध्यान के द्वारा ही प्राप्त होती है, एकाग्रता के द्वारा ही प्राप्त होती है । एकाग्रता के द्वारा शक्ति को अर्जित कर अनेक व्यक्ति दूसरों का उत्पीड़न करते हैं, दूसरों को सताते हैं, लूटते हैं और मार भी डालते हैं । यह शक्ति भी ध्यान के द्वारा प्राप्त होती है । कोई व्यक्ति किसी का भला करना चाहे, अच्छा करना चाहे तो यह शक्ति भी ध्यान के माध्यम से ही प्राप्त होती है । इस प्रकार दोनों प्रकार की शक्तियां ध्यान के माध्यम से ही उपलब्ध होती हैं । इसलिए आत्मविकास करने वाले व्यक्ति का यह पहला कर्तव्य है कि जो बनना है, उसका वह चित्र बनाए | जब तक यह नहीं होता, तब तक जो बनना होता है, वह नहीं बना जा सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy