________________
शक्ति की श्रेयस् यात्रा और सामायिक
१३५ के कण-कण में विद्यमान होता है, उस समय कोई भी शक्ति हमें समता से विचलित नहीं कर सकती । इसलिए श्रेयस् की यात्रा में सान्निध्य बहुत अपेक्षित होता है।
तब होती है सामायिक
सन्निधि का अर्थ है-निकटतां । जब सामायिक के चरम शिखर को उपलब्ध आत्मा के साथ हमारी एकात्मकता होती है, तब सहज ही हमारे जीवन में सामायिक का अवतरण हो जाता है । उसी क्षण में यह अनुभूति जागती है-'करेमि भंते ! सामाइयं-भगवन् ! मैं सामायिक करता हूं ।' सामायिक जीवन की एक बहुत बड़ी घटना है | यह घटना घटित होती है उस यात्रा में गति होने पर । जब व्यक्ति सभी पापमय प्रवृत्तियों से अपने अस्तित्व को पृथक् अनुभव करता है तब सामायिक घटित होती है। जब तक सावद्य कर्मों के साथ, क्लेश में डालने वाले कर्मों के साथ अपने अस्तित्व को जोड़ता चलता है तब तक सामायिक घटित नहीं होती । सामायिक घटित होती है उस संकलन के द्वारा कि जो कुछ मेरे सामने है वह सारा का सारा भिन्न है। मेरा अस्तित्व इन सबसे भिन्न है | मेरे अस्तित्व के साथ इनका जुड़ना ही दुःख है । जब व्यक्ति अपने अस्तित्व को पृथक् देखना शुरू करता है और अपने अस्तित्व से परे की सारी वस्तुओं को भिन्न देखता है, उस क्षण में जीवन में सामायिक घटित होती है | जितनी भी सावध प्रवृत्तियां हैं, राग-द्वेष की प्रवृत्तियां हैं, जिनको हमने अपने अस्तित्व से जोड़ रखा है, अपने अस्तित्व का अंग बना रखा है, जब तक उनके साथ अभिन्नता की दृष्टि बनी रहेगी तब तक सामायिक कभी नहीं घटेगी, उसका अवतरण नहीं होगा । जब यह मिथ्यादृष्टि बदल जाएगी, यह सम्यगदृष्टि आ जाएगी कि ये विजातीय तत्त्व मेरे अंग नहीं हैं, ये सब 'पर' हैं, मेरे स्वत्व पर अधिकार जमाए हुए हैं, मुझे दुःख के चक्र में डाले हुए हैं-यह दृष्टि बनते ही सामायिक घटित होगी । ये विजातीय गुण-धर्म मुझे कष्ट देने वाले, ठगने वाले, दुःख के चक्र में डालने वाले हैं-यह स्पष्ट होते ही, उसी दिन सामायिक के लिए उचित स्थान बन जाएगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org