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________________ १२३ मानसिक शक्ति और सामायिक कि बहुत बड़ा अनर्थ हो रहा है । अनर्थ जैसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता । किन्तु वे धीरे-धीरे संचित होते जाते हैं और एक बिन्दु ऐसा आता है कि वह मानसिक विकार मानसिक पागलपन के रूप में बदल जाता है । वर्तमान जगत् में मानसिक विकारों और मानसिक उन्मादों की जितनी भयंकर स्थिति है, संभवतः अतीत में वैसी नहीं रही होगी। आज मानसिक विकारों और मानसिक पागलपन को बढ़ाने के लिए बहुत अवकाश है, सुविधाएं हैं । ऐसी स्थिति है कि आदमी का पागलपन बहुत बढ़ सकता है, मानसिक विकार बहुत बढ़ सकते हैं। इसके लिए वातावरण अनुकूल है । आज मानसिक विकार इतने बढ गए हैं कि उनका समाधान नहीं हो रहा है | उनकी चिकित्सा असंभव-सी प्रतीत हो रही है । आज की साइको-सोमेटिक पद्धति के द्वारा एक बात प्रतिपादित हुई है कि जो बहुत सारी शारीरिक बीमारियां समझी जाती हैं, वे वास्तव में मनोकायिक बीमारियां हैं । वे पहले मन में जन्म लेती हैं और फिर शरीर में अभिव्यक्त होती हैं । उनका मूल कारण शरीर नहीं है । उनका मूल कारण है मन । इस खोज के पश्चात् यह समस्या और अधिक गंभीर हो गयी कि हर बीमारी के मूल में मानसिक विकृति की खोज होनी चाहिए । ज्वलंत प्रश्न __इस स्थिति में एक ज्वलंत प्रश्न है कि इतने मानसिक रोग हैं तो उनका उपचार कैसे किया जाए ? बहुत बड़ा प्रश्न है । मनोचिकित्सक मानसिक रोगों का उपचार कर रहे हैं । उनके सामने अनेक पद्धतियां हैं । बिजली के झटके देकर तनाव की चिकित्सा करते हैं । लगातार निद्रा दिलाते हैं । ऐसी दवा इंजेक्ट करते हैं, जिससे रोगी चौबीस घंटे तक निद्रा में रहे । अर्द्ध निद्रा भी दिलाते हैं । कुछ ऐसी दवाइयां देते हैं जिससे रोगी आधी नींद में रहता है । मस्तिष्क में करंट का निरंतर प्रयोग किया जाता है । तनाव-विसर्जन में ये उपाय उपयोगी माने जाते हैं । इस प्रकार चिकित्सा की अनेक पद्धतियां हैं । उन सारी पद्धतियों से दो बातें स्पष्ट होती हैं कि रोग-निवारण के लिए औषधि का प्रयोग होता है या विद्युत् का प्रयोग होता है | सबका प्रयोजन है मस्तिष्क को आराम देना, विचारों और विकल्पों की उधेड़बुन को समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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