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व्यक्तित्व का नवनिर्माण और सामायिक
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प्रत्येक साधक रेचन करना सीखे | अच्छे विचार आने पर खुश न हो और बुरे विचार आने पर निराश न हो । जो होता है, उसे होने दे । जब नये लोग ध्यान का अभ्यास करते हैं तब बुरे विचार आते ही घबरा जाते हैं । वे कहते हैं-आज बहुत बुरा हुआ । मैं कहता हूं-बहुत अच्छा हुआ कि उतनी गंदगी बाहर निकल गयी । ध्यान का अर्थ है--गहराई में जाना । जब व्यक्ति गहराई में उतरता है तब एक के बाद एक परत उघड़ती है और दबे हुए सारे संस्कार उदित होने लगते हैं ।
___ दो प्रकार के ज्चर होते हैं-हाडज्वर और सामान्य ज्वर | जब ज्वर हड्डीगत हो जाता है तब लगता है कि कोई ज्वर नहीं है किन्तु वह ज्वर बहुत ही खतरनाक होता है । जिस ज्वर के लक्षण प्रत्यक्ष दीखते हैं, उसकी चिकित्सा की जा सकती है। अस्थि-ज्वर ऐसा नहीं है। वह बाहर नहीं दिखता । भीतर ही भीतर चलता है । विचारों का संस्कारों का, भी यही क्रम है । साधक के द्वारा जब उन संस्कारों को कुरेदा जाता है, उभारा जाता है तब वे आक्रमण करते हैं। ____ जो साधक ध्यान की गहराई में जाता है वह इस बात से न घबराए कि बुरे संस्कार उभर रहे हैं, बुरे विचार आ रहे हैं। वह इस बात से घबराकर ध्यान छोड़ देता है तो पथच्युत हो जाता है । यदि वह उस स्थिति को संभाल लेता है तो आगे बढ़ जाता है । यह एक ऐसा बिन्दु है, जहां से व्यक्ति नीचे गढ़े में भी गिर सकता है, शिखर पर भी पहुंच सकता है । ___सामायिक की साधना करने वाला व्यक्ति समझ लेता है कि जो अतीत का ऋण या देय है, वह प्रकट होगा, सामने अवश्य ही आएगा, किन्तु मुझे घबराना नहीं है । मैं अपने व्यक्तित्व के नव-निर्माण में लगा हुआ हूं और पुराने व्यक्तित्व को विसर्जित करने में प्रयत्नशील हूं ! मैंने अनेक मान्यताओं
और धारणाओं के आधार पर जिस व्यक्तित्व का निर्माण किया था, उसे आज छोड़ रहा हूं, उसका रेचन कर रहा हूं । व्यक्तित्व के नव-निर्माण के लिए नयी ईंटें, नया चूना और नयी सामग्री मैंने जुटा ली है । अब मैं सामायिक की साधना में निरंतर आगे से आगे बढ़ता जाऊंगा ।
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