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________________ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक ने मोह के अणुओं को दबाया है, उपशांत किया है। उसने कषायों का उपशमन किया है । वे आत्मा में दबे पड़े हैं । उनका अस्तित्व बना हुआ है । निमित्त मिलते ही वे उछलते है और वीतराग व्यक्ति पुनः अवीतराग बन जाता है, नीचे चला जाता है, गिर जाता है । वह लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता । उपशमन की प्रक्रिया, दबाने की प्रक्रिया, भीतर रहने देने की प्रक्रिया बहुत ही खतरनाक होती है। बहुत सारे अधिकारी लोग प्रतिकूल घटना को दबाने में अधिक विश्वास करते हैं। वे भूल जाते हैं कि दबी हुई घटना भयंकर | रूप धारण करती है । उससे अपराध भी भयंकर होता है । ११८ साधक दबाए नहीं, परिष्कार करे, निर्जरा करे । विचार चाहे अच्छा हो या बुरा, उसे दबाए नहीं, खुलकर आने दे। साधक केवल मन का कायोत्सर्ग करे, वचन और शरीर का कायोत्सर्ग करे । साधक जागरूकता से बहुत कुछ देखता रहे। जैसे श्वास और शरीर की प्रेक्षा करते हैं, चैतन्य केन्द्रों और कर्मविपाकों की प्रेक्षा करते हैं, वैसे ही विचारों की प्रेक्षा करें । विचारों को तटस्थभाव से देखते चले जाएं । विचार अपने आप विसर्जित हो जाएंगे । जब तक उनका रेचन नहीं होगा तब तक वे सताते रहेंगे । प्राणायाम में तीन बातें की जाती हैं- रेचक, पूरक और कुंभक । हमारे व्यक्तित्व मे दो बातें प्राप्त होती हैं- रेचक और पूरक, छोड़ना और लेना । किन्तु वास्तव में लेने की बात गौण है क्योंकि हम मानते हैं कि आत्मा पूर्ण है । आत्मा को कुछ भी लेना नहीं है । उपादेय कुछ भी नहीं है वहां केवल रेचक की बात प्रधान है । हमारी पूर्णता इसलिए प्रकट नहीं होती कि हम रेचन करना नहीं जानते । हमारे संकल्प, हमारी कामनाएं और भावनाएं, हमारे मनोरथ इसीलिए अधूरे रह जाते हैं कि हम रेचन करना नहीं जानते । रेचन की प्रक्रिया सामायिक के साथ रेचन की बात आवश्यक अंग के रूप में जुड़ी हुई है । 'तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि' यह रेचन की प्रक्रिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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