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व्यक्तित्व का नवनिर्माण और सामायिक
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चला गया था, अपने स्वत्व से दूर चला गया था, अपने घर को छोड़ बाहर चला गया था, अब मैं अपने घर में फिर लौट आया हूं । मैं निन्दा करता हूं। मैंने विषमता का जो आचरण किया था, आज मैं अनुभव करता हूं कि वह निंदनीय और कुत्सित था । मैं गर्दा करता हूं । सारा पाप-कर्म घृणित था । आदरणीय नहीं था ।' 'अप्पाणं वोसिरामि'- "मैं अपने सारे पुराने व्यक्तित्वों का विर्सजन करता हूं । आज से मैं नये व्यक्तित्व का निर्माण करता हूं । व्यक्तित्व का नव-निर्माण करता हूं और जो मैं था उसे छोड़ देता हूं । सामायिक से पूर्व जो मेरा व्यक्तित्व था, उसका विसर्जन करता हूं। आज से मेरा नया जन्म होगा, व्यक्तित्व का नव निर्माण होगा और मैं नये सिरे से जन्म प्राप्त कर अपना जीवन धारण करूंगा।" द्रष्टा भाव का विकास
यह बहुत बड़ी जागरुकता है | जब तक अतीत का शोधन नहीं होता तब तक हमारा संकल्प चलता नहीं है । व्यक्ति दिन में दस-बीस-बार सोच लेता है कि यह अच्छा नहीं है, मुझे नहीं करना चाहिए किन्तु समय आते ही वही काम हो जाता है | इसी प्रकार क्रोध न करने की सोचता है किन्तु घटना आते ही गुस्सा तैयार है । व्यक्ति अनेक मनोरथ निर्मित करता है किन्तु जब अवसर आता है तब सारी बातें व्यर्थ हो जाती हैं, विलीन हो जाती हैं। ऐसा क्यों होता है ? इसलिए होता है कि हम केवल वर्तमान को सुधारना चहते हैं किन्तु अतीत की निर्जरा करना नहीं चाहते । अतीत की निर्जरा किए बिना, अतीत की शक्ति को क्षीण किए बिना केवल वर्तमान को सुधारने की बात व्यर्थ हो जाती है । वर्तमान में रहना बहुत जरूरी है । वर्तमान में रहना तभी संभव है जब अतीत पीछा करना छोड़ दे । अतीत को क्षीण करने का एक मात्र उपाय है-द्रष्टाभाव का विकास | जिस व्यक्ति ने अपने द्रष्टाभाव को विकसित कर लिया, उसने अतीत से अपना पिंड छुड़ा लिया । जिसने द्रष्टाभाव का विकास नहीं किया, उसे अतीत भूत की भांति सताता रहता है । जब वह ध्यान करने बैठता है तब हजारों प्रकार की वासनाएं उभर आती हैं । व्यक्ति निराश हो जाता है, सोचता है- ध्यान मेरे वश की बात नहीं
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