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________________ ११४ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक समता का उपयोग करें या और कुछ करें, हम इस सचाई को अवश्य समझें कि जब तक अतीत हमारा पीछा करता रहेगा तब तक हम जो चाहते हैं वह जीवन में घटित नहीं कर पाएंगे । अतीत का भूत हमारा पीछा कर रहा है, हम उससे पीछा छुड़ाएं । जब ऐसा होगा तभी हम स्वतंत्र रूप में अपना स्वतंत्र जीवन संचालित कर पाएंगे । वह हमारा पीछा करता रहे, हम उससे न बच पाएं तो हम स्वतंत्र व्यक्तित्व को नहीं पनपा सकेंगे । परतंत्रता का सामना हमें पग-पग पर करना पड़ेगा। त्याग सावध प्रवृत्ति का सामायिक करने वाला व्यक्ति इस बात से बहुत सावधान और जागरूक रहता है, इसलिए वह कहता है-“करेमि भंते ! सामाइयं सव्वं सावज्ज जोगं पच्चखामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कायेणं न करेमि न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि!" भंते मैंने आपका सान्निध्य प्राप्त किया है । मैंने समभाव के साथ तादाम्य स्थापित करने का संकल्प लिया है । मैंने सावद्य कर्मों और प्रवृत्तियों को त्यागने का संकल्प किया है । मैं कोई भी अकरणीय कर्म नहीं करूंगा, अवांछनीय कर्म नहीं करूंगा । मन से, वचन से और काया से मैं सावध कर्म न करूंगा, न कराऊंगा और न करने वाले का ही अनुमोदन करूंगा।' स्वस्थ संकल्प बहुत ही स्वस्थ संकल्प है । सान्निध्य भी उपलब्ध है । सब कुछ है । साथ-साथ साधक इस सचाई के प्रति जागरूक भी है कि मेरा यह संकल्प तब ही फलित हो सकता है जब अतीत का पीछा छूट जाए | यदि अतीत का पीछा नहीं छूटता है तो संकल्प नहीं चल सकता | टूट जाता है । इसलिए साधक दोहराता है-“पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ।" "भंते ! अतीत में मैंने जो आचरण किए थे, मैं उनका प्रतिक्रमण करता हूं। उस भूमिका से अब मैं नयी भूमिका में लौट आया हूं। मैं जो विषमता की भूमिका में था अब समता की भूमिका में लौट आया हूं | मैं अपने से दूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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