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व्यक्तित्व का नवनिर्माण और सामायिक शारीरिक व्यक्तित्व . चौथा खंड है-शारीरिक व्यक्तित्व । शरीर के आधार पर हमारा एक व्यक्तित्व निर्मित होता है । शरीर की अवधारणाओं के आधार पर, शरीर की दीप्ति के अनुसार एक व्यक्तित्व निर्मित होता है । हमारे बहुत सारे कार्य शारीरिक आधारणाओं के आधार पर होते हैं । शरीर की मांग के आधार पर, शरीर की तृप्ति और अतृप्ति के आधार पर अनेक वर्जनाएं और कार्य की अनेक विधाएं चल सकती हैं । मानसिक व्यक्तित्व
पांचवा खंड है-मानसिक व्यक्तित्व । यह सब व्यक्तियों का भार ढोने वाला है । यह सब व्यक्तित्वों के दायित्वों और प्रतिक्रियाओं का भार ढोता है । परामानसिक व्यक्तित्वों का भार भी यही ढोता है । सभी प्रकार के व्यक्तित्वों के दायित्व का वहन करना, प्रतिक्रियाओं को झेलना, क्रियाओं का उत्सर्जन करना- यह सब मानसिक व्यक्तित्व करता है । यह व्यक्तित्व मन के आधार पर खड़ा है । इसने अनेक मान्यताएं बना रखी हैं । इनमें दोनों प्रकार की मान्यताएं हैं-वर्जना की मान्यताएं और बहुत करने की मान्यताएं। हमने इतनी मान्यताएं खड़ी कर रखी हैं कि पूरा मानसिक व्यक्तित्व हमारे ऊपर छाया हुआ है।
ये पांचों व्यक्तित्व स्पष्ट हैं । इनकी प्रतिष्ठापना के लिए बहुत तर्क अपेक्षित नहीं है । बहुत सरलता से इन्हें समझाया जा सकता है । व्यक्ति पर माता-पिता का, समाज का, शरीर का और मन का प्रभाव होता है । ये ऐसी उजली उजली सफेद बातें हैं कि इनको देखने के लिए दीया जलाने की आवश्यकता नहीं होती । जो स्वयं में स्पष्ट है, उसके लिए प्रकाश आवश्यक नहीं है। परामानसिक व्यक्तित्व
हमारे व्यक्तित्व का छठा खंड है- परामानसिक व्यक्तित्व | यह छिपा हुआ है, तमस् में है, अंधेरे में है । प्रकट नहीं है । किन्तु यह ऐसा व्यक्तित्व
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