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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक दोष संतान में संक्रान्त होते हैं । माता-पिता के अवयव, अवयवों के गुणदोष संतान में संक्रमित होते हैं । संतान माता-पिता का मिश्रण है । उसमें तीन अवयव माता के और तीन अवयव पिता के होते हैं | मनुष्य मनुष्य जैसा होता है, वह हाथी जैसा नहीं होता । इसका कारण है-आनुवंशिकता | आनुवंशिकता ही यह निश्चित करती है कि मनुष्य मनुष्य के आकार का ही होगा, हाथी के आकार का नहीं । मानव को मानव का आकार मिलता है, मांस पेशियां मिलती हैं, अस्थि-संस्थान, मस्तिष्क आदि आदि मिलते हैं, यह सब आनुवंशिकता के कारण मिलता है । हमारे व्यक्तित्व का एक खंड है-आनुवंशिक व्यक्तित्व । सामाजिक व्यक्तित्व
व्यक्तित्व का तीसरा खंड है-सामाजिक व्यक्तित्व । समाज के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है । वह समाज से परे रहने पर नहीं बनता । एक आदमी दूसरे से बातचीत करता है, स्पष्ट बोलता है । अपनी बात दूसरों को समझाता है और दूसरों की बात स्वयं समझता है, यह विकास समाज के आधार पर ही होता है । यदि समाज न हो तो यह विकास नहीं हो सकता। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ व्यवहार करता है, लेन-देन करता है, यह सारा सामाजिक व्यक्तित्व है । जितनी परस्परता है, वह सामाजिक व्यक्तित्व है। समाज के नियम हैं, समाज की व्यवस्थाएं हैं और समाज की अवधारणाएं हैं । एक व्यक्ति एक प्रकार की वेश भूषा पहनता है और दूसरा दूसरे प्रकार की। यह सामाजिक प्रभाव है । जो व्यक्ति जिस समाज में रहता है वह उसकी अवधारणा के अनुसार वस्त्र पहनता है और यदि वह कुछ भी परिवर्तन करता है तो वह स्वयं एक प्रश्नचिह्न बन जाता है । वेशभूषा, व्यवहार और आचारविचार-ये सारे हमारे सामाजिक व्यक्तित्व के कारण हैं । यदि व्यक्ति अकेला व्यक्ति होता, यदि उसका समाजिक व्यक्तित्व नहीं होता तो शायद व्यक्ति अपने तक ही सीमित रहता, बहुत विकास नहीं कर पाता । सामाजिकता हमारे व्यक्तित्व का तीसरा महत्वपूर्ण खंड है।
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