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________________ ११२ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक है। जिसके हाथो में दूसरे पांचों व्यक्तित्वों की नकेल है । वह चाहे तो भौगोलिक, आनुवंशिक, सामाजिक, शारीरिक और मानसिक-सभी प्रभावों को नष्ट कर सकता है । इसके हाथ में है-बनाना और बिगाड़ना, सृष्टि और संहार । प्रलय और निर्माण-सब कुछ इसके हाथ में है। यह भीतर छिपा रहकर इस प्रकार संचालन कर रहा है कि सब इसके इशारे पर नाच रहे हैं । वर्तमान के वैज्ञानिकों और मानसशास्त्रियों ने बहुत बड़ी क्रान्ति की । उन्होंने कहा- 'चेतन मन के स्तर पर या भौतिक स्तर पर जो कुछ घटित हो रहा है वह अचेतन मन का प्रतिबिम्ब है | यह भौतिक जगत् में बहुत बड़ी घटना है । जो समूचे सिद्धांत को बदल देती है। जहां केवल शरीर या स्थूल मन के आधार पर सारी अवधारणाएं चलती हैं, उस स्थिति में यह प्रतिपादन सामने आया कि व्यक्ति जो स्वप्न लेता है, व्यक्ति के मन में जो वासनाएं उभरती हैं, वे सब दमित वासनाएं स्वप्न में उभरती हैं और जागते में उभरती मन के दो स्तर __मन के दो स्तर हैं चेतन मन का स्तर और अवचेतन मन का स्तर । अवचेतन मन का स्तर अत्यंत शक्तिशाली है | चेतन मन अवचेतन मन से कुछ अवदान प्राप्त कर अपना कार्य चलाता है । जितनी घटनाएं घटित होती हैं, हमारे जितने आचरण हैं, उन सबका स्रोत है-अचेतन मन । कर्मशास्त्र ने हजारों वर्षों पूर्व इस विषय का प्रतिपादन किया था कि व्यक्ति जो कुछ करता है उसके पीछे कर्म की प्रेरणा होती है । 'कुम्मणा जायए'-कर्म से ही होता है । यही प्रेरक तत्त्व है । हमारे सभी आचरणों का मूल स्रोत है कर्म । जो कर्म संचित हैं, जो कर्म अस्तित्व में हैं, सत्ता में हैं और जब वे उदय में आते हैं, जब उनका विपाक होता है तब नाना प्रकार की घटनाएं होती हैं। सारा व्यक्तित्व उनके आधार पर चलता है । कर्मशास्त्र की भाषा में जिसे हम कर्मों का विपाक कहते हैं, उसे ही हम मनोविज्ञान की भाषा में दमित इच्छाओं का उभार कहते हैं। दोनों का आशय तो निकट है ही, भाषा की दूरी भी नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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