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मानसिक स्वास्थ्य और सामायिक
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इसको एक निश्चय पर ले जाने का एक ही मार्ग है, वह मार्ग है सहिष्णुता का । सहिष्णुता और समता का पारस्परिक अनुबंध है । सहिष्णुता से समता का विकास होता है । मन अनुकूल और प्रतिकूल- दोनों स्थितियों को समभाव से सह सके, यह है उसको एक निश्चय पर ले जाना ।
समता और स्वास्थ्य
सत्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाता है तब समता की साधना विकसित होती है । जो व्यक्ति सत्य के प्रति समर्पित नहीं होता वह सामायिक नहीं कर सकता, समता की साधना नहीं कर सकता । समता और मानसिक स्वास्थ्य अलग-अलग नहीं हैं । समता का ही एक नाम है - स्वास्थ्य । दोनों पार्ययवाची हैं। आयुर्वेद में शरीर के स्वास्थ्य को ही स्वास्थ्य नहीं माना है, मन के स्वास्थ्य को भी स्वास्थ्य माना है । प्रश्न आया कि स्वस्थ कौन है ? इसके उत्तर में
कहा गया
'समाग्निः समदोषश्च, समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः, स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
- जिस व्यक्ति के शरीर की धातुएं सम हैं, विषम नहीं हैं, अग्नि सम है, विषम नहीं है, दोष और मल की क्रिया भी सम है, वह व्यक्ति स्वस्थ है । जिसकी इंद्रियां उच्छृंखल नहीं हैं, जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण है, जो प्रसन्न आत्मा है, वह स्वस्थ है। जिसकी शरीर की धातुएं और मल-दोष सम है किन्तु मन की प्रसन्नता नहीं है, निर्मलता नहीं है तो वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो सकता । जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं है वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो सकता । स्वस्थ रहने के लिए शरीर की क्रियाओं का ठीक होना और मन की प्रसन्नता होना- दोनों आवश्यक हैं। मन की प्रसन्नता का अर्थ हर्ष नहीं है । जहां हर्ष है वहां शोक है। जहां शोक है वहां हर्ष है । केवल हर्ष या केवल शोक नहीं होता । यह एक जोड़ा है, द्वन्द्व है । मन की निर्मलता इससे भिन्न वस्तु है । ‘निर्मलं गगनं' - आकाश निर्मल है। इसका अर्थ है कि आकाश बादलों से रहित है, निर्मल है । जो आकाश बादलों से व्याप्त है, रेत और धूल से व्याप्त है, वह निर्मल नहीं होता । जो इन सबसे शून्य है, वह निर्मल
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